रीवा.गामा पहलवान यह नाम कुश्ती क्षेत्र में जब भी लिया जाता है, हमेशा अदब और सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि गामा रेसलर रेसलिंग की दुनिया के वो स्पेशलिस्ट थे, इसलिए आज भी कोई सानी नहीं है। वो एक ऐसे पहलवान थे, जो कभी कुश्ती नहीं लड़ते थे, लेकिन बहुत ही कम लोग होते थे, जो ये जानते थे कि गामा पहलवान मध्य प्रदेश के रीवा से विशेष नाता रखते थे। उन्होंने रीवा एरिना घाट में ही कुश्ती के दांव पेंच सीखकर लंदन में अपना परचम लहराया था और रीवा को एक पहचान दी थी।

बंधक जोखिम गामा का जन्म 22 मई 1878 ई. दतिया में दो दिन पहले हुआ था। गामा का असली नाम गुलाम हुसैन था। उनके पिता अजीज पहलवान दतिया महाराजा के शाही किरायेदार थे। जब गामा 4 वर्ष उनके पिता की मृत्यु हो गई. गामा ने कुश्ती की शुरुआत में मामा मीरा बाक्स के संरक्षण की शुरुआत की। खलीफा ने ईमानदारी से कहा कि भाई माधौ सिंह ने उन्हें दांव पर लगा दिया। अपने कुश्ती जीवन के शुरुआती दौर में गामा ने उस दौर के नामी पहलवान रहीम सुल्तानी और यहाउद्दीन से दो-दो हाथ किए, दोनों की कुश्ती पहलवान पर छूटी। सन् 1890 में महाराजा जोधपुर ने कुश्ती का एक मुकाबला खेला जिसमें 400 सौ पहलवानों ने हिस्सा लिया, इसमें 12 साल के गामा को विजेता घोषित किया गया।

गामा का रीवा आगमन
गामा प्रतिरोध की प्रसिद्धि दिन प्रति दिन बढ़ती गई थी। रुस्तम-ए-हिंद होने के बाद तो पूरी हिंदुस्तानी रियासतों में उनके नाम का भुगतान हो गया था। गामा रेस्टोरेन्ट के रुस्तम-ए-हिन्द मीरा बाक्स पहले ही रीवा दरबार में रॉयल रेस्टोरेन्ट थे। वो अपने भांजे गामा को रीवा बुला लाए। रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमन सिंह की पहली जोड़ी बहुत खुश हुई।

सरदार सिंह के चिकित्सकों में अभ्यास
मीरा बक्स और गामा के पहले महाराजा वेंकटरमण सिंह जोधपुर के पास आए थे सरदार सिंह नाम के एक पहलवान थे। इन कुश्ती अभ्यास के लिए बड़े पिरामिड के निकट अम्हिया मोआलो में एरिना खोदा गया था। वहीं पर सरदार सिंह ने अपने शिष्यों को दांव पेच सिखाया था। गामा नाटककार लगे उसी सामान में कुश्ती का दांव पेच शिष्यों को शामिल करें और स्वयं बहुत कठिन रियाज़ करें। रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमन सिंह ने गामा की रोज की खुराक में 6 महीने के एकरे का मांस, 4 दूध की बाल्टी, 1 खिलौना फल, 2 किलो घी, पिस्ता बादाम 750 ग्राम दिया गया था। गामा में 98 किलों के वजन की पत्थर की चकरी में जंजीर बांध कर अपने गले में जंजीर फाँसीकर सैकड़ों की संख्या में लोग थे। इसके अलावा 5 हजार बार दण्ड बैठक भी थी। दंड बैठक के दौरान जमीन पर उनके सिक्के से टार हो गए, उसी दौरान गामा के शिष्य बाल्टी में दूध को मग से पीने के लिए देते थे।

विश्व रैंकिंग के लिए गामा का चयन
वर्ष 1910 ई. इंग्लैंड के लंदन शहर में कुश्ती की विश्व चैम्पियनशिप प्रतियोगिता हो रही थी, जिसके लिए हिंदुस्तान से गामा स्टार्स को चिन्हित किया गया था। वह वक्ता गामा रीवा महाराजा के दरबार में थे। अन्य ब्रिटिश भारतीय हुकुमत ने आने-जाने और अपने अन्य खर्चों से इनकार कर दिया, ऐसा लग रहा था कि गामा उस कंपनी में हिस्सा नहीं ले पाएंगे। जब यह बात रीवा नरेश महाराजा वेंकटरमण सिंह जूदेव के साथ हुई तो वो आगे आए और भारत के गवर्नर जनरल से प्रोत्साहन की और आर्थिक सहायता प्रदान की गई। तब गामा स्टीमेट में भाग लेने के लिए लंदन भेजा गया।

लंदन पहुंचने पर भारतीय कुश्ती दल को उस वक्त गहरी धक्का लगा जब गेम को छोटे कद के कलाकारों ने उन्हें कमिशन दे दिया। गामा ने अपने मैनेजर बिन जामिन की मदद से इंग्लैंड के अखबारों में यह चुनौती प्रकाशित की कि दुनिया का कोई कलाकार उसके सामने खड़ा है, अगर 5 मिनट भी टिक जाएगा तो उसे पांच पाउंड का इनाम दिया जाएगा। गामा की यह चुनौती दंगल लंदन के एक थिएटर में दो दिन तक चली जिसका फ़ायदा गामा को हुआ। पहले दिन गामा ने तीन रेसलरों को और दूसरे दिन 12 रेसलरों को 5 मिनट से भी कम समय में पछाड़ दिया। इस कलाकृति का प्रभाव यह हुआ कि विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में खिलाड़ियों को बाउंड बाय गामा को अवसर मिला।

गामा के प्रिय शार्गिद
गामा रेसलर रीवा में 10-12 साल तक रहे और बच्चों को भी कुश्ती सिखाते थे। गामा के रीवा आगमन पर उस्ताद मुमताज खाँ बिचिया रीवा ने अपने द्वारा तैयार किया गया अंतिम संस्कार के लिए 1934 में उन्हें गामा के सम्मान में दिया था। उनके प्रियर्ग शिदों में पं. राम भाऊ शुक्ला (बड़ी हरदी) हरिहर प्रसाद पाण्डे (मकरवट), हनीफ खाँ (बिछिया रीवा) थे। इनमें रामभाऊ शुक्ला रीवा स्टेट चैंपियन, हरिहर पांडे रीवा स्टेट चैंपियन के अलावा अल्लाहाबाद चैंपियन, बुंदेलखंड चैंपियन थे, जबकि हनीफ खाँ 1935 के युवा वर्ग के रीवा स्टेट चैंपियन बने थे। गामा फर्म के सबसे नजदीक हरिहर प्रसाद पांडे थे गामा ने हरिहर प्रसाद को महाराजा गुलाब सिंह से अपने साथ ले जाने के लिए कहा था, उन्होंने कहा था कि हरिहर को रुस्तमे हिंद में 1 साल के अंदर बनाया जाए। दिया.

गामा का आखरी बार रीवा आगमन
गामा बिल्डर सन् 1935-36 ई. आखरी बार रीवा आये में उनकी निशानी करने के लिए खुद महाराजा गुलाब सिंह चंदुआ तक गए और उन्हें राज अतिथि बनाकर रीवा में रखा गया। गामा के रीवा आने पर उनके शिष्य और उनके मित्र मित्रता हो गये, वे सभी से मिलने गये। रीवा नरेश महाराजा वेंकटरमण सिंह ने उन्हें 30 किलो वजन के चांदी का भारी भरकम गदा का दर्जा दिया था। गामा जहां भी गए वो गदा लेकर जीवित थे। सत्य (नादान) क्षेत्र के दार लाल कैप्टन प्रताप सिंह अपने करीबी दोस्तों में से थे। गामा जब रीवा में कुछ महीने बाद इंतिहा के बाद यहां से पटियाला जाने लगे तो उन्होंने अपने दो मुग्दर लाल कमान प्रताप सिंह को उद्यम कर दिया था। उस मुग्दर में अरबा भाषा में गामा का नाम और फ़ुरसी में शेर लिखा था। उसका प्रत्यक्ष दृश्य सिल्वर सी में दिखता है। वह मुग्दर कैप्टन प्रताप सिंह के परपोते अशोक सिंह के पास आज भी मौजूद हैं।

पाकिस्तान चले गए थे गामा
गामा ठेकेदार अपने भतीजों की हत्या से दुखी रेगिस्तान के समय पाकिस्तान वहां से चले गए, जैसे कि उनका कद्रदान नहीं था। उन्होंने पाकिस्तान के व्यापारी से शादी कर ली थी. 82 साल की उम्र में लाहौर के एक अस्पताल में 23 मई 1960 को मुफलिसी की हालत में विश्व विजेता गामा रेसलर ने इस दुनिया को कहा दिया। वह रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमन सिंह के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहते हैं और रीवा में अपने शिष्यों और दोस्तों का हाल खतरा के द्वारा हमेशा असफल रहते हैं। गामा रेसलर अपने जीवन काल में कोई भी रेसलर कैरियर लगभग 50 वर्षों का अपराजेय रहा है।

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