खंडवा: खंडवा के सिंगाजी महाराज समाधि स्थल की मान्यता है। यहां दूर-दराज से भक्त आते हैं और मंत पूरी होने पर न केवल प्रसाद चढ़ाते हैं बल्कि भंडारा भी करते हैं। इस समाधि स्थल पर हर साल मेला शरद पूर्णिमा के दिन से लगता है। इस साल का मेला भी शुरू हो चुका है. भक्त दूर-दूर से इस मेले में शामिल हो रहे हैं। यहां के बारे में प्रचलित है कि संत सिंगाजी महाराज के निकटतम शिष्य नारायण दास जी थे। उन्होंने घोषणा की कि इस समाधि स्थल पर शरद पूर्णिमा का मेला लगाया जाएगा। तभी से इस मेले की शुरुआत हुई.
हर साल लाखों की संख्या में आते हैं
भक्तों का कहना है कि शरद पूर्णिमा की रात में अमृत वर्षा होती है और संतों की समाधि पर भी अमृत बरसता है। संत सिंगाजी समाधि स्थल पर मंत्रोच्चार के निशान मिलते हैं और मंदिर पूरी तरह से होने पर निशान भी मिलते हैं। निमाड़ का प्रसिद्ध संत सिंगाजी मेला शरद पूर्णिमा से शुरू हो गया है। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान करीब एक लाख लाख से ज्यादा प्रभावशाली सिंगाजी महाराज की समाधि पर मत्था टेकने आए हैं।
संस्कृति की झलक
निमाड़ की संस्कृति और परंपरा इस मेले में दिखती है इसलिए इस मेले को पहचानना संभव है। निमाड़ की आस्था का प्रतीक यह मंदिर झाबुआ, बड़वानी, बैतूल, खरगौन के अलावा महाराष्ट्र सहित अन्य मंदिरों में भी देखे जा सकते हैं। सिंगाजी समाधि पर मुख्य रूप से घी, नारियल, चिरौंजी का प्रसाद चढ़ाया जाता है। जिन भक्तों की मंहत पूरी होती है, वे यहां भंडारा भी करते हैं।
दूर से आने वाले भक्तों के लिए खट्टी-मीठी बातें
यहां के ग्रामीण जन दूर-दूर से आने वाले भक्तों के लिए भोजन प्रसादी का भोग लगाते हैं। कई भक्त यहां 10 दिन तक रुक कर अपनी सेवाएं देते हैं। यहां पर कुंतलों प्रसाद चढ़ाया जाता है जिसमें मिश्री, चिरौंजी, शकर और घी का प्रयोग किया जाता है। संत सिंगाजी महाराज का मेला समाधि स्थल पर शुरू हो चुका है। यहां प्रदेश भर से भक्त कई हजार निशान लगाते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार संत सिंगाजी ने संवत 1616 में अपने गुरु मनरंग स्वामी की इच्छा से समाधि ली थी। यहां से यहां अद्वितीय ज्योतोष मूर्ति है। इसमें कहा गया है कि जो भी भक्त अपनी मंन्नत मांग कर जाता है वह वापस लौटकर अगले साल समाधि स्थल पर दर्शन करने जरूर आता है।
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पहले प्रकाशित : 17 अक्टूबर, 2024, 17:47 IST