जांजगीर चांपा: छोटे-छोटे कार्य करके लोग आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान समय में लोग बच्चे कर अमीर हो रहे हैं। नवजात शिशुओं में बकरीपालन, मुर्गीपालन और मछलीपालन की ओर से तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। सरकार भी इसे काफी बढ़ाने का काम कर रही है। ऐसे ही गांव के किसान बकरीपालन कर अपनी सफलता की कहानी रच रहे हैं और लोगों के लिए मिसाल बन रहे हैं। जांजगीर चांपा जिले के हरदी विशाल के रहने वाले कांशीराम हैं, अपनी किस्मत को शेयरों के अधिकार पर छूट नहीं। बल्कि कच्चे समय के साथ अपने को मजबूत बनाया और अपनी मेहनत के बल से अपनी किस्मत को बदल दिया। उन्होंने खेती-किसानी के साथ-साथ बकरीपालन की अच्छी शुरुआत की।

बकरीपालन की शुरुआत
जिले के बलौदा विकासखंड अंतर्गत हरदी विशाल के रहने वाले किसान कांशीराम खेती-किसानी कर अपना जीवन यापन कर रहे थे। वह कृषि पर ही निर्भर रहती थी और अपने घर का गुजराता मज़ाक करती थी। इसके अलावा उनकी आय का कोई जरिया नहीं था. फिर कुछ साल पहले उन्होंने बकरीपालन का काम शुरू किया और कम समय में ही इस व्यवसाय से अच्छा लाभ कमाने लगे। लेकिन उनके पास बकरीपालन का कार्य अच्छे तरीके से करने के लिए पक्का मकान नहीं था। जिस कारण बारिश में बकरियों को सुरक्षित रखना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। बेरोजगारी के कारण कई बार बकरियां मर गईं, जिससे उन्हें बहुत नुकसान हुआ। इनमें से आधी भी बकरीपालन से होती थी, उन्हें ही गुजराता चल रहा था। इसके अलावा एनबीएल के अंतर्गत बकरीपालन के लिए शेड एअरवियर तैयार हुआ, जिसमें काशीराम बकरीपालन की अच्छी कमाई कर रहे हैं।

जिला अधिकारियों से बातचीत
सिपाही कांशीराम ने लोकल 18 को बताया कि वह बकरीपालन कर रहे हैं। जिले के अधिकारियों से पूछा गया कि यह बकरी किसके पास है। इस पर कांशीराम ने जवाब दिया कि बकरी को मिट्टी के बने कोयले में रखा जाता है। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार सचिवालय योजना) के अंतर्गत बकरीपालन के लिए शेड बनाया गया है, जिसका लाभ कांशीराम अपनी बकरीपालन को ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास वर्तमान में 20-25 बकरियां हैं, जो बिल्कुल स्वस्थ और अच्छे हैं। उन्हें इस बीमारी का खतरा भी नहीं है. कांशीराम ने कहा था कि यदि महात्मा गांधी नरेगा से बकरीपालन शेड नहीं बनता तो उनके लिए शेड बनाना मुश्किल था।

बकरी पालन में सफलता की कहानी
कांशीराम के बेटे रामायण लाल ने बताया कि वह अपने पिता के साथ मिलकर तीन-चार साल की उम्र से बकरीपालन कर रहे हैं। इस चार साल के अंतर में उन्होंने 40 बकरियां बेचकर दो लाख रुपये से ज्यादा की कमाई की है. इस अध्ययन से बच्चों की पढ़ाई, एवं खेत बनाने में खर्च किया गया। उन्होंने बताया कि उनके पिता कांशीराम ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना से व्यक्तिगत हितग्राही मूलक कार्य के माध्यम से बकरीपालन शेड का आवेदन ग्राम पंचायत में जमा करवाया था। जिला पंचायत द्वारा 93 हजार 63 रुपये की प्राथमिकता स्वीकृत कर निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। कार्य पूर्ण होने के बाद अब बकरियों को पक्के शेड में रखा जा रहा है। अब वह अपने बकरीपालन के इस वर्कआउट को और आगे बढ़ाना चाहती हैं और बेहतर आर्थिक स्थिति के साथ आगे बढ़ने की उम्मीद रखती हैं।

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