रायपुरः- राजधानी रायपुर के पुराने इलाके में महामाया देवी का ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है। समलेश्वरी माता मंदिर परिसर में ही स्थित हैं। आज हम आपको इससे जुड़ी रोचक कहानियां बताएंगे। असली बहुत से देवी देवताओं के नाम उनके क्षेत्र में विशेष से स्पष्ट दिखाई देते हैं। हम वर्तमान में चर्चा करते हैं कि मां समलेश्वरी जो संबलपुर जिला क्षेत्र की कुलदेवी हैं। संबलपुर की कुलदेवी होने के कारण ही उनके क्षेत्र का नाम संबलपुर पड़ा, जिसकी मान्यता है कि पटनागढ़ के राजा ने जब अपने छोटे भाई को वहां बुलाया था यानी संबलपुर क्षेत्र की अलग राजधानी बनाकर वहां राज्य करने के लिए भेजा था।

उस दौरान राजा के साथ ऐसी ही एक घटना घटी की मां समलेश्वरी ने सपने में दर्शन देते हुए कहा कि मैं सिमली के पेड़ के नीचे हूं, आप मुझे जमीन से हटाकर वहां पर मेरे मंदिर में प्रतिष्ठित करो तो सिमली के पेड़ के नीचे से माताजी प्रकट हो गईं हुए हैं. इसलिए उनका नाम समलेश्वरी अपलोड किया गया और उस क्षेत्र का नाम भी संबलपुर फीड किया गया। महामाया मंदिर के पुजारी मनोज शुक्ला ने लोकल18 को बताया कि छत्तीसगढ़ के क्षेत्र में हयवंशीय राजाओं का साम्राज्य था और यहां के राजा दूसरे राजवंश के घर में अपने किसी कार्यक्रम में शामिल होते थे। ऐसे ही एक बार हैहयवंशी राजा जब संबलपुर गए और वहां समलेश्वरी माता के दर्शन पूजन आदि में शामिल हुए। राजा को संबलपुर क्षेत्र की समलेश्वरी माता की जो पूजा विधि थी वह बहुत अच्छी लगी।

पुरातत्व विभाग ने किया सर्वे
हैहयवंशी राजा ने अपनी कुलदेवी मां महामाया के परिसर में एक अलग विस्तृत स्थान पर समलेश्वरी माता की प्रतिष्ठित कलाकृति बनाई तो संबलपुर के समलेश्वरी मंदिर के बनने के बहुत बाद में इस मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिरों में दीवारें और खाबो में जो भव्य चित्र बने हुए हैं। इनका सर्वेक्षण छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग द्वारा किया गया है। उनका कहना है कि यह मंदिर 8वीं सदी पहले का है। उस खाते से ऐसी गणना करने पर पता चलता है कि समलेश्वरी माता का मंदिर 1400 साल पुराना है।

इस मंदिर में हैं बहुत सारे रहस्य
यह 16 खंभों में खड़ा हुआ मंदिर जगमोहन परिसर है। भगवती मां समलेश्वरी माता जो पूर्वाभिमुख मंदिर हैं और जो यंत्र बनाती हैं उनका निर्माण किया गया है। बाहर जो 16 खंभे वाली जगमोहन है। वहां पर भी यंत्र बनते हैं, उस समय की वास्तुशिल्प और निर्माण कला की बात क्या होती है कि आज भी जब नया संवत शुरू होता है तो एक महीने पहले से एक महीने बाद यानी चैत्र नवरात्रि में सूर्य उदय के समय सूर्य की किरणें मां समलेश्वरी के स्टेज तक का चुनाव है. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्राचीन काल की स्थापत्य कला की बहुत पूजा की जायेगी। मंदिर में और भी छोटे-मोटे सारे रहस्य हैं, जो भी भक्त दर्शन के लिए आते हैं। भगवती माँ समलेश्वरी उनकी हर भावनाओं को पूरा करती हैं।

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अस्वीकरण: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्यों और आचार्यों से बात करके लिखी गई है। कोई भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि संयोग ही है। ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है। बताई गई किसी भी बात का लोकल-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है।

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