Navratri 2023: नौ दिनों तक मां समलेश्वरी को लगता है विशेष भोग, जानें चांपा की कुलदेवी की महिमा


रिपोर्ट: लखेश्वर यादव

जांजगीर-चांपा: चांपा शहर में जमींदार परिवार द्वारा स्थापित मां सम्लेश्वरी की महिमा बड़ी निराली है। नवदाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने से पहले यहां हर जोड़ा नतमस्तक होता है। मां समलेश्वरी से आशीर्वाद लेने के बाद ही नवदंपती अपनी नई गृहस्थी की शुरुआत करते हैं।

यहां मां सम्लेश्वरी को नवरात्रि पर्व में तिथि के अनुसार भोग लगाया जाता है। जिसका अपना फल भी खास है। प्रतिपदा को घिसाव का भोग लगाया जाता है, इससे की मुक्ति होती है। दूसरे को यहां शक्कर का भोग लगता है, इससे दीर्घायु की प्राप्ति होती है। तीसरी को दूध का भोग लगाने से सभी प्रकार के दुख दूर होते हैं। चौथाई मालपुआ के भोग से विघ्न क्लेश पास नहीं आता है।

वहीं पंचमी को केले का भोग लगाने से बुद्धि कौशल में वृद्धि होती है। षष्ठी को मधु के भोग से शांति प्राप्त होती है। सप्तमी को गुड के भोग से शोक दूर होता है। अष्टमी नारियल का भोग लगाने से ताप शांति मिलती है और नवमी को मां को भोग लगाने से लोक-परलोक में सुख मिलता है। यहां महाअष्टमी की रात्रि श्राद्ध कर्म समर्पित किया जाता है।

साल 1760 में मंदिर बना था
सम्लेश्वरी प्रशासनिक समिति के संरक्षक राजमहल चंपा कुमार साहब रुद्रेश्वर शरण सिंह और कुंवर भिवेन्द्र बहादुर सिंह हैं। चम्पा में सम्लेश्वरी देवी की प्राण प्रतिष्ठा और स्थापना का इतिहास काफी रोचक है। समलेश्वरी मंदिर की स्थापना के इतिहास में बताया जाता है कि वर्ष 1760 में मंदिर का निर्माण एवं प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा जमींदार विश्वनाथ सिंह ने किया। पूर्व में हसदेव नदी का पूर्वी भू-भाग ओडिशा संबलपुर रियासत के अंतर्गत था। पश्चिमी भूभाग रतनपुर रियासत का क्षेत्र था। किसी बात को लेकर उस समय एकाएक संबलपुर रियासत द्वारा रतनपुर पर चढ़ाई कर दी गई। ऐसी दुर्घटना में रतनपुर नरेश के सामने एक गंभीर समस्या हो गई है। जिसमें चम्पा जमीदार विश्वनाथ सिंह के दृश्यों ने रतनपुर का साथ दिया। दोनों रियासतों में घमासान युद्ध के बाद अंत: विजयश्री रतनपुर को मिली।

रिकॉर्ड से शुरू हुआ चंपा जमींदार
युद्ध में चंपा जमींदार का अहम योगदान रहा है। विजय के कारण जीते भाग विश्वनाथ सिंह के रूप में प्राप्त हुए। रिकॉर्ड से चांपा जमींदारी की स्थापना हुई। इसे मदनपुर 84 के नाम से जाना जाता है। जमींदार परिवार का निवास मुख्य ग्राम पहरिया था। जमींदार परिवार द्वारा मदनपुर हसदेव नदी के वेस्ट पार्ट में महामाया मंदिर का अनावरण किया गया। चांपा को राजधानी बनाया गया है। नदी के पूर्वी भाग में स्थित चंपा सिक्किम संबलपुर से जीता हुआ भू-भाग था, जो चंपा जमींदार के अधीन नहीं था। वहां की आस्था न परतों की वजह से संबलपुर रियासत के सम्लेश्वरी देवी मंदिर के जमींदार परिवार ने चंपा में घोटाले किए। साथ ही उन्हें कुलदेवी माना गया।

चंपा की कुलदेवी हैं
हर साल चैत्र व क्वांर नवरात्रि में यहां मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित है। यहां जवारा का नेटवर्क किस तरह से विसर्जित किया जाता है, बड़ी संख्या में भक्त झिलमिलाते हैं। मां समलेश्वरी को चंपा की कुलदेवी भी कहा जाता है। मां सम्लेश्वरी देवी के दरबार में आने वाले सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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