according to the world health organization, kangaroos care best for early and underweight babies. जानें वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, इमैच्योर या कम वजन वाले बच्चे के लिए कंगारू केयर सबसे अच्छा है।

कई बार प्रीटर्म डेलिवरी (preterm delivery) या प्री मेच्योर डेलिवरी के कारण बच्चा जल्दी पैदा हो जाता है। यह बच्चा पूरी तरह से विकसित भी नहीं हो पाता है। इसका वजन भी काफी कम होता है। इसके कारण बच्चों में गंभीर बीमारी, संक्रमण का डर बना रहता है। इसके कारण बच्चे का मृत्यु दर भी बढ़ जाता है। इन सभी जोखिम से बचाने के लिए बच्चे को इनक्यूबेटर में रखा जाता है। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन (World Health Organization) ने प्रीटर्म डेलिवरी के कारण जन्मे इम्मेच्योर बेबी के लिए कंगारू केयर (kangaroo care) का सुझाव दिया है। पर ये कंगारू केयर क्या है?

क्या है यह कंगारू केयर (kangaroo care)

आप जानती होंगी कि सभी कंगारुओं को प्री मेच्योर बेबी पैदा होते हैं। उन्हें कुछ दिन तक अपने शरीर से लगे खोल में बच्चे को रखकर विशेष देखभाल करनी पड़ती है। बच्चे मां के साथ स्किन टू स्किन कांटेक्ट बनाकर विकसित होते हैं। ठीक यही बात इंसानों के कंगारू केयर (kangaroo care) पर भी लागू होती है। इसके अंतर्गत नवजात शिशु और मां के बीच स्किन टू स्किन संपर्क बनाये रखने का अभ्यास किया जाता है।

सबसे पहला प्रयोग कहां हुआ

फिजिशियन और शोधकर्ता एडगर रे सनाब्रिया और हेक्टर मार्टिनेज-गोमेज़ ने वर्ष 1979 में कोलंबिया के बोगोटा में कंगारू मदर प्रोग्राम विकसित किया। यह कम वजन वाले शिशुओं के लिए पारंपरिक इनक्यूबेटर उपचार के विकल्प के रूप में था। समय से पहले और कम वजन के बच्चों को तत्काल कंगारू मदर केयर की सुविधा दी जाती है।

फायदेमंद है मां और बच्चे का स्किन टू स्किन संपर्क (skin to skin contact)

वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार, इसमें बच्चे के साथ स्किन टू स्किन संपर्क बनाया जाता है। आमतौर पर इमैच्योर बेबी को जन्म के बाद मां से अलग कर दिया जाता है। बच्चे को इनक्यूबेटर में रख दिया जाता है। कंगारू केयर में बच्चे को मां के साथ आगे बांध दिया जाता है। इस दौरान स्तनपान भी कराया जाता है। मां के शरीर की गर्मी से समय से पहले या जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे के जीवित रहने की संभावना में काफी सुधार हो जाता है।

बच्चे को कंगारू मदर केयर

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित क्लिनिकल परीक्षण के नतीजे बताते हैं कि जन्म के तुरंत बाद बच्चे को कंगारू मदर केयर देना चाहिए। इसमें मां के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क और विशेष स्तनपान शामिल है। जैसे ही समय से पहले या कम वजन के बच्चे का जन्म होता है, यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है। तभी से इसमें सुधार आना शुरू हो जाता है।

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कंगारू मदर केयर में मां के साथ त्वचा से त्वचा का संपर्क और विशेष स्तनपान शामिल है।  चित्र : अडोबी स्टॉक

शिशु को इनक्यूबेटर में स्थिर करने के बाद ली जाती है सेवा (child incubator)

विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के अनुसार, शिशु को इनक्यूबेटर या वार्मर में स्थिर करने के बाद ही कंगारू मदर केयर शुरू होना चाहिए। इसमें औसतन 3-7 दिन लग सकते हैं। जन्म के तुरंत बाद कंगारू मदर केयर शुरू करने से मृत्यु दर में 40% की कमी आ सकती है।

डब्ल्यूएचओ में न्यूबॉर्न यूनिट के प्रमुख और अध्ययन के समन्वयक डॉ. राजीव बहल के अनुसार, मां और बच्चे को जन्म से ही शून्य अलगाव के साथ रखने के अलावा छोटे बच्चों के लिए नवजात गहन देखभाल के तरीके में भी क्रांतिकारी बदलाव आएगा। यह बीमार बच्चे के साथ मां की लगातार उपस्थिति सुनिश्चित करता है। इससे शिशु जल्दी स्वस्थ हो सकते हैं।

अलग करने पर बढ़ जाता है मां और बच्चे के बीच तनाव (stress)

पीडियाट्रिक्स चाइल्ड हेल्थ जर्नल के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, मां को छोटे और बीमार नवजात शिशु से अलग करने पर मां और बच्चे दोनों में तनाव बढ़ता है। ऐसे समय में दोनों को अक्सर निकट संपर्क की आवश्यकता होती है। कंगारू मदर केयर इस बाधा को दूर करता है। इसमें प्रतिदिन लगभग 17 घंटे मां और बच्चे के बीच स्किन टू स्किन संपर्क प्रदान किया जाता है। मां और बच्चे को एक साथ रखने से बच्चे के जीवित रहने और बढ़ने में मदद मिलती है

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मां को छोटे और बीमार नवजात शिशु से अलग करने पर मां और बच्चे दोनों में तनाव बढ़ता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

मां और बच्चे दोनों की देखभाल में है मददगार (kangaroo care)

इसमें यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इस दौरान नवजात शिशुओं और माताओं की गुणवत्तापूर्ण देखभाल की जाए। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें श्वसन सहायता, थर्मल देखभाल, स्तनपान सहायता और संक्रमण की रोकथाम और प्रबंधन भी करना होगा। इससे संक्रमण और हाइपोथर्मिया कम हो पाया, जिससे छोटे बच्चों की मौत हो जाती है

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, कंगारू मदर केयर छोटे और बीमार नवजात शिशुओं की सुरक्षा के लिए सबसे किफायती तरीकों में से भी एक है।

यह भी पढ़ें :- Gestational diabetes : अगर मां को है गर्भकालीन मधुमेह, तो बच्चा हो सकता है मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज का शिकार

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