Menstrual Period problems ke baare mei jaanein,- मेंसट्रूअल पीरियड प्रॉब्लम्स के बारे में जानें

पीरियड्स साइकल का आना महिलाओं की चिंताएं बढ़ा देता है। दरअसल, मासिक चक्र के दौरान होने वाली ऐंठन, मूड स्विग और हैवी फ्लो भले ही सामान्य लगे, मगर कई बार ये मेंसट्रूअल डिसऑर्डर का कारण भी बन जाता है। हार्मोन इंबैलेंस इन परेशानियों का मुख्य कारण साबित होता है, जो शरीर में मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं का जोखिम बढ़ाता है। जानते हैं कुछ ऐसी ही मेंसट्रूअल पीरियड प्रॉब्लम्स (Menstrual Period problems) के बारे में जो रिप्रोडक्टिव सिस्टम को पहुंचाती हैं नुकसान।

पहले समझिए क्या है मेंसट्रूअल साइकल

पीरियड्स यानि मेंसट्रूअल साइकल उस प्रक्रिया को कहते हैं जब किसी महिला के यूटर्स की लाइनिंग यानि एंडोमेट्रियम बह जाती है। ये प्रक्रिया महिलाओं की समस्त रिप्रोडक्टिव लाइफ (reproductive life) के दौरान चलती रहती है।

इस बारे में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शिवानी कपूर का कहना है, “हर मासिक चक्र के साथ एंडोमेट्रियम यानि यूटर्स की लाइनिंग फीटस यानि भ्रूण को पोषण देने के लिए खुद को तैयार करती है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का बढ़ा हुआ स्तर इसकी दीवारों को मोटा करने में मदद करता है। अगर फर्टिलाइजे़शन नहीं होता है, तो एंडोमेट्रियम (Endometrium) योनि और गर्भाशय ग्रीवा (cervix) से रक्त और म्यूकस के साथ बाहर हो जाती है, जिसे पीरियड आना कहा जाता है।

Periods se judi samasyaon ke baare mei jaanein
शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने से शरीर में ओव्यूलेशन होने लगता है। जो यूटर्स की लाइनिंग को थिक करने में मदद करता है। चित्र : अडोबी स्टॉक

मेंसट्रुअल पीरियड्स का समय सभी महिलाओं में एक-दूसरे से जुदा होता है। कुछ महिलाओं का मासिक चक्र 28 दिनों का होता है, तो कुछ महिलाओं की पीरियड साइकल 25 से 35 दिनों की होती है। मासिक धर्म को बैलेंस करने में हार्मोन्स का मुख्य योगदान होता है।”

एनएचएस के अनुसार शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ने से शरीर में ओव्यूलेशन होने लगता है। जो यूटर्स की लाइनिंग को थिक करने में मदद करता है। वहीं प्रोजेस्टेरोन यूट्रस को एग के लिए तैयार करता है। प्रेगनेंसी न होने की सूरत में शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन की मात्रा कम होने लगती है और यूट्रस की लाइनिंग निकल जाती है।

पर अगर हार्मोनल असंतुलन हो तो महिलाओं को पीरियड संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे न केवन ब्लड फ्लो कम होने लगता है, बल्कि अनियमित पीरियड की समस्या भी होने लगती है।

1. डिसमेनोरिया (dysmenorrhea)

डिसमेनोरिया पीरियड में होने वाली उस ऐंठन को कहते हैं, जो सामान्य से थोड़ी ज्यादा होती है। पेल्विक इन्फ्लेमेशन डिजीज पीरियड साइकल को पेनफुल बना देती है। इससे वेजाइना में सूजन का खतरा रहता है, जो फैलोपियन ट्यूब को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। इससे प्रेगनेंसी में कई बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।

2. एंडोमीट्रियोसिस (Endometriosis)

यह अनियमित पीरियड का मुख्य कारण साबित होता है। इसमें यूटर्स की लाइनिंग यानि एन्डोमेट्रियल ऊतक के बाहर बढ़ने लगता है। अस्त व्यस्त दिनचर्या इसके बढ़ने का कारण हो सकती है। इससे वेटगेन, रक्त स्त्राव में बढ़ोतरी और रिप्रोडक्टिव सिस्टम प्रभावित होने की समस्या बनी रहती है।

Period pain ke kaaran jaanein
इससे वेटगेन, रक्त स्त्राव में बढ़ोतरी और रिप्रोडक्टिव सिस्टम प्रभावित होने की समस्या बनी रहती है। चित्र- शटर स्टॉक

3. मेनोरेजिया (Menorrhagia)

मेनोरेजिया के दौरान पीरियड के दौरान रक्त स्त्राव सामान्य से अधिक होने लगता है। इससे शरीर में आयरन की कमी बढ़ जाती है, जो एनीमिया का कारण बनने लगता है। इससे शरीर में पीसीओएस की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पीरियड साइकल अनियमित होने लगती है।

4. एमेनोरिया (Amenorrhea)

समय पर पीरियड साइकल आरंभ न होना एमेनोरिया कहलाता है। इसमें एमेनोरिया दो प्रकार का होता है। पहला है प्राइमरी एमेनोरिया जिसमें 16 साल या उससे अधिक होने पर युवतियों में पीरियड साइकल शुरू न होना। दूसरा होता है सेकेण्डरी एमेनोरिया, जिसमें युवतियों को तीन से 4 महीने के बाद मासिक धर्म रूक जाना इस समस्या को दर्शाता है।

ये भी पढ़ें- मदरहुड से लेकर मेनोपॉज तक, जानिए कब और क्यों कम होने लगती है महिलाओं में सेक्स की इच्छा

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