बिलासपुरः बिलासपुर के ऐतिहासिक तालाब, जो कभी शहर की पहचान और पानी की जरूरत के मुख्य स्रोत थे, अब खतरे में हैं। इन तालाबों ने केवल शहर को जल उपलब्ध नहीं कराया, बल्कि पर्यावरण को विकसित किया और स्थानीय लोगों के निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई। मामा भांजा, चांदमारी जैसे कई तालाब न केवल जल स्रोत थे, बल्कि शहर के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्मारक भी हैं। अंग्रेजों के दौर से जुड़े इस तालाब को आज भी खंडहर और अनदेखी के कारण खत्म किया जा रहा है।

तालाबों के आसपास विशाल अंटार्कटिका का जंगल और उनका विशेष ढांचा न केवल जल संकट पैदा हो रहा है, बल्कि असंतुलित संतुलन भी बन रहा है। इनमें से नष्ट होने से औद्योगिक स्तर गिर रहा है, तापमान बढ़ रहा है और मछली पालन जैसे व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। यह समस्या केवल प्रमुख नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक है, जो शहर के भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।

मामा भांजा और चांदमारी तालाब
दर्शनूद्दीन छोटे कलाकार ने बताया कि उन्होंने बचपन से ही बिलासपुर के तालाबों को देखा था, जिन पर पूरे शहर का प्रतिबंध था। मामा भांजा तालाब और चांदमारी तालाब, जो अंग्रेज़ों के समय के खलिहान थे, आज व्यापार मंडल पर चढ़े हुए हैं। चाँदमारी तालाब पर कभी नानी के युवाओं ने प्रशिक्षण लिया था, और यह एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान था। तालाबों के स्मारक घाट स्थित हैं। बिलासपुर के कर्बला, शिंगराजपारा और चांटीडीह क्षेत्र में प्रमुख तालाबों के अवशेष संकट में हैं। तालाबों को चारों ओर से अविश्वास के जाल में घेर दिया गया है और कई तालाब पूरी तरह मिट गए हैं।

होटल स्तर और पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है
तालाबों के नष्ट होने से बिलासपुर का रात्रि विश्राम हो रहा है। इसके साथ ही ब्याज दर में वृद्धि हो रही है, जिससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है। पानी के प्राकृतिक स्रोत ख़त्म होने से शहर में जल संकट बढ़ता जा रहा है।

मछली पालन एवं व्यवसाय खत्म हो रहा है
पर्यावरण वैज्ञानिक प्रसून सोनी ने बताया कि शहर में लगभग 147 तालाब हैं। 1992 से अब तक के सेटेलाइट चित्र और आँकड़े देखें तो कई तालाबों की मान्यताएँ मिट गईं और इन तालाबों के लुप्त होने से मछली पालन और उससे जुड़ा व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। यह स्थिति स्थानीय उद्योग और रोजगार पर गंभीर प्रभाव डाल रही है।

प्रशासन का दावा और विशेषज्ञ की चेतावनी
निगम आयुक्त अमित कुमार ने बताया कि शहर के तालाबों को चिह्नित कर हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है. पर्यावरणविद् और विशेषज्ञ का कहना है कि तालाबों को बचाने के लिए प्रशासन और जनता को मिलकर ठोस कदम उठाना होगा।

ऐतिहासिक और ऐतिहासिक खज़ाना
छोटे जानवरों और पर्यावरण के शौकीनों का मानना ​​है कि तालाबों को संरक्षित करने के लिए ऐतिहासिक धरोहरों को जाना जाना चाहिए। जनसहभागिता एवं जागरूकता अभियान से इन तालाबों को जोड़ा जा सकता है। बिलासपुर के तालाब में केवल जल संसाधन नहीं हैं, बल्कि शहर के ऐतिहासिक और ऐतिहासिक स्मारक हैं। मामा भांजा और चांदमारी जैसे तालाबों का अस्तित्व समाप्त होना केवल मौसमी समस्या नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक क्षति भी है। इन तालाबों को बचाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए जाएंगे, ताकि आने वाली जगह के लिए यह प्राकृतिक और ऐतिहासिक स्मारक संरक्षित रह सके।

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