घर: मध्य प्रदेश का खूबसूरत और स्वच्छ शहर, नाता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी हैं। करीब एक सौ साल पहले महात्मा गांधी भवन आये थे। यहां मशहुर दो दिन के फोटोग्राफर थे और डेकोर में सबसे पहले हिंदी में मातृभाषा बनाने का आग्रह किया गया था। इसी तरह इंदौर के श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा सहायता प्राप्त बाबू ने चेन्नई और वर्धा में हिंदी साहित्य गुरु की स्थापना की थी।

लोकल 18 के माध्यम से हम आपको बताते हैं कि रेस्तरां में मराठी, गुजराती, मालवी, अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा-भाषी होने के कारण कोमोपॉलिटन सिटी हो, लेकिन यह हिंदी शहर दिल के सबसे करीब है। इसलिए डेरे ने हिंदी आंदोलन में ऐसे-ऐसे बड़े योगदान दिए हैं, जो इतिहास में दर्ज हैं। इंदौर की ख्याति और प्रतिष्ठित संस्था श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इन परिवर्तनों के साक्षी हैं।

जब पहली बार इंदौर आया बाबू
हिंदी साहित्य समिति के प्रधान मंत्री अरविंद केजरीवाल ने लिखा है कि वह शहर है, जहां हिंदी साहित्य समिति का सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया गया था। यहां वर्ष 1910 में श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की स्थापना हुई थी। हालाँकि, पहले यह पुस्तकालय के रूप में जानी जाती रही थी, लेकिन वर्ष 1918 में जब इंदौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का आठवाँ स्थान बना, तो इसमें महात्मा गाँधी पहली बार इंदौर आये। इस सम्मेलन में उन्होंने भाषण देते हुए कहा कि मालवा क्षेत्र के होलकर राज में हिंदी बड़ी अच्छी बोली जाती है और यहां हिंदी का प्रचार-प्रसार किया जाता है।

एक रात में हिंदी भवन का विमोचन
गांधी ने कहा था कि यहां हिंदी भवन निर्माण होना चाहिए। उनकी इच्छा को मूर्ति के रूप में स्थापित करने के लिए होल्कर शासन ने रातोरात जगह की स्थापना की और अगले दिन गांधीजी द्वारा इसे बनवाया गया। इसके बाद वह वर्ष 1935 में गांधीजी ऑटोमोबाइल इंदौर आये। यह वक्ता था हिंदी साहित्य सम्मेलन के 24वें मंच का। इस दौरान उन्होंने हिंदी से दक्षिण तक नामांकन के लिए अभियान चलाया। मूल में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने की शुरुआत हुई।

हिंदी के लिए जादुई थे रुपये
इसी के तहत वर्धा (महाराष्ट्र) में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, मद्रास (अब चेन्नई) में दक्षिण भारत में हिंदी समिति और हैदराबाद में हिंदी में स्थापना के लिए प्रचार-प्रसार किया गया। इसके लिए इंदौर ने एक ही आर्थिक सहायता प्रदान की थी। असल में, गांधीजी ने हिंदी के प्रचार के लिए पैसों की मांग की थी। इसके बाद हुकुमचंद सेठ और इंदौर के अन्य लोगों ने मिलकर उस दौरान 1,35,000 रुपये की राशि गांधीजी को दी थी।

चाँदी की कटोरी-थाली ले गये थे
जावड़ेकर ने बताया कि साहित्य समिति के इतिहास से विघटन में दर्ज किया गया है कि यह सम्मेलन नेहरू पार्क में हुआ था, जो पहले मैदान में हुआ था। वहीं, बाबूलाल की कुटिया बनी हुई है। वह हुकुमचंद सेठ के यहां मंदिर और खाना पकाने का सामान था। हुकुमचंद के यहां उन्हें सिल्वर की थाली और प्लांट में खाना बनाया गया था। फिर गांधीजी ने कहा था, जहां मैं खाता हूं वहां मैं खाना खाता हूं, वहीं धो कर अपने साथ ले जाता हूं। इस तरह वो अपने साथ सरहुकुमचंद सेठ के यहां से चांदी की थाली और कटोरा भी ले गए, जहां बाद में नीलम की भी हत्या कर दी गई।

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