रायपुर: संपूर्ण छत्तीसगढ़ में इन दिनों गणपति बप्पा की धूम मची हुई है। प्रातः-शाम आरती एवं प्रसाद के रूप में मोदक एवं लड्डू का वितरण किया जा रहा है। घर से लेकर सामान में गणेशजी शान से विराजित हैं। राजधानी रायपुर में अलग-अलग थीम पर सजाएं दी गई हैं। गणेशोत्सव के आयोजन में हम आपके लिए एक ऐसी प्राचीन मूर्ति के बारे में बताते हैं जिसका इतिहास गणेश बेहद रोचक है। घने जंगलों के बीच गणपति जी की इस मूर्ति का दर्शन सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि विदेश से भी सैलानी आते हैं। ये दुनिया में भगवान गणपति की सबसे दुर्लभ प्रतिमाओं में से एक मणि है। उदाहरण के लिए दांते का रक्षक भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग के पुरात्त्ववेत्ता प्रभात कुमार सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में प्राचीन ऐतिहासिक भगवान गणपति का यह विशेष मंदिर है। दांते के बैलाडीला की ढोलकल पहाड़ी पर भगवान गणेश हैं। यह मंदिर दांतेवे जिला मुख्यालय से 13 किमी दूर पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर में स्थापित गणेश जी की प्रतिमा का आकार ढोलक के आकार का बताया गया है। इसी आकार की वजह से गणेश जी को यहां ढोलकल गणेश के नाम से जाना जाता है। वहीं इस पूरी पहाड़ी को भी ढोलकल पहाड़ी कहा जाता है।
विशेष रूप से वास्तुशिल्प पर लोग निर्भरता रखते हैं पूजा-पाठ करने के लिए
इतनी ऊपर गणेश जी की प्रतिमा कैसी है यह आज भी कोई नहीं जानता। क्षेत्र के युवा भगवान गणेश को अपने रक्षक-संतोषजनक पूजा करते हैं। प्रतिमा के दर्शन के लिए उस पर्वत पर चढ़ना बहुत कठिन है। विशेष उपकरण पर ही लोग वहां पूजा-पाठ के लिए जाते हैं। करीब तीन फीट और मजबूत पाद क्रैट्री ग्रेड पत्थर से बनी यह प्रतिमा अत्यंत कलात्मक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश और परशुराम जी के बीच इस पहाड़ी पर युद्ध हुआ था। एक दिन में परशुराम जी के फरसे से गणेश जी का एक दांत टूट गया। इस मान्यता से गणपति जी एकदंत कहलाते हैं।परशुराम जी के फरसे से गजानन का दांत, इसलिए पहाड़ के शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा गया।
पहले प्रकाशित : 9 सितंबर, 2024, 15:46 IST