राजानंदगांव: छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का प्रतीक 100 साल पुराना मडई मॉल का आयोजन राजनांदगांव में शुरू हुआ है। राजनांदगांव के काली माई मंदिर के पास भरकापारा में हर साल इस मेले का आयोजन होता रहता है, जहां सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल होकर मेले का आनंद लेते हैं। यह मड़ई मेला काली मंदिर समिति द्वारा आयोजित किया जाता है और इसे छत्तीसगढ़ के सभी मड़ई मेलों का शुभारंभ माना जाता है।

प्रदेशभर के मड़ई मेलों की शुरुआत राजनांदगांव से
यह मड़ई मेला प्रदेश का पहला मड़ई मेला माना जाता है, जिसके बाद छत्तीसगढ़ के विभिन्न आदर्शों में भी इसी परंपरा के अंतर्गत मड़ई मेलों का आयोजन होता है। मेले के आयोजक गणेश प्रकाशक के अनुसार, “मडई मेला हमारे उत्सव की परंपरा का हिस्सा है और यह मेला पूरी तरह से मुक्त होता है।” यहां कोई भी व्यक्ति अपना स्टॉल फ्री फॉर्म से प्राप्त कर सकता है।

मेले में सांस्कृतिक झलक और मनोरंजन के साधन
मडई मॉल में लोगों के मनोरंजन के लिए तरह-तरह के झूले, स्टॉल और स्टॉल के ठेले लगाए जाते हैं। दूर-दूर से आए लोग यहां मां काली और अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं, जिसके बाद मेले की घोषणा होती है। स्थानीय निवासी दिनेश कुमार ने बताया, “इस मेले की शुरुआत हमारी मांग के समय से हो रही है और यह छत्तीसगढ़ का पहला मड़ई मेला है जो मनाता है।

छत्तीसगढ़ी संस्कृति की विशेष पहचान
छत्तीसगढ़ में मड़ई मेला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाया जाता है, जहां देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की शुरुआत होती है। मेले में राजनंदगांव के अलावा आसपास के ग्रामीण इलाकों से भी लोग अलग होते हैं और मेले का आनंद लेते हैं। राजनांदगांव का मड़ई मेला न केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है बल्कि छत्तीसगढ़ की परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है।

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