बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक अलौकिक परंपरा हर साल दिसंबर के दिन देखने को मिलती है, जिसे ‘गड़वा बाजा बाजार’ कहा जाता है। यह विशेष बाजार लगभग 200 वर्षों से चल रहा है और यदुवंशी समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां फूल, मिठाई या दीयों का नहीं, बल्कि पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाने वाले कलाकारों का सौदा होता है। इसके बाद यदुवंशी समुदाय अपने में लेकर आते हैं और रावत नाच महोत्सव का आयोजन करते हैं। महोत्सव के दौरान मोहरी, निशान, झांझ-मंजीरा जैसे वाद्ययंत्रों की धुनों पर पूरा समुदाय खुशी से नाचता-गाता है।

इस विशेष बाजार में गंधर्व समाज के कलाकार अपनी कला के साथ आबाद होते हैं और यदुवंशी समुदाय के लोग पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों को परखकर अपनी तय बिक्री करते हैं। गढ़वा बाजा की धुनों पर नाचने वाले आदिवासी समुदाय के लिए यह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो 30-40 हजार रुपये में तय होने वाले बाजे की कीमत इस बार 1.80 लाख रुपये तक पहुंच गई।

लाखों में लग रही बाजे की बोली
इस साल बाजार में रेसिंग का प्रभाव भी दिखा। कलाकारों की टोलियां पारंपरिक रूप से 30-40 हजार रुपये में अनुबंधित थी, लेकिन इस बार सबसे अधिक बोली 1.80 लाख रुपये प्रति डॉलर। कई यदुवंशी समुदाय के लोगों ने 95 हजार से 1.10 लाख रुपये का भी सौदा किया। यह उपदेशक है कि इस सांस्कृतिक परंपरा की महत्ता कितनी गहरी है।

पारंपरिक वाद्य यंत्रों का महत्व
गढ़वा बाजा बाजार में आने वाले कलाकार पारंपरिक वाद्य यंत्र जैसे मोहरी, निशान, धापड़ा और झांझ-मंजीरा लेकर आते हैं। यदुवंशी समाज के लोग रावत नाच महोत्सव में पुरानी धुनों पर नृत्य करते हैं। यह उनका कार्यक्रम सांस्कृतिक गतिविधियों को जीवंत बनाता है और लोगों के बीच एकता और उत्साह का संचार करता है।

आकर्षण का केंद्र ‘परी’ का नृत्य
रावत नाच में एक खास आकर्षण होता है ‘परी’, जो पुरुष होते हुए भी महिलाएं का भेष धारण कर नृत्य करती हैं। उदाहरण के तौर पर आज के समय में ट्रांसजेंडर के रूप में जाना जाता है। यह पारंपरिक योद्धा गड़वा बाजा की धुनों पर जीवंत हो जाता है और पूरे समारोह को भव्यता प्रदान करता है।

बर्चस्व ने परिवर्तनीय सौदा किया
63 साल खोरबहार यादव ने बताया कि 45 साल पहले जब वे अपने दादा के साथ यहां आये थे, तब 5-7 कोरी (100-140 रुपये) में बाजा का सौदा हो गया था। आज एसोसिएशन ने इसे लाखों रुपए तक पहुंचाया है। फिर भी यदुवंशी समाज इस परंपरा को जीवित रखने के लिए महँगाई दाम चुकाने के लिए तैयार रहता है। ये कलाकार पर्यटक मंडई, मटर और अन्य पर्वों पर धुनों पर प्रदर्शन करते हैं।

रावत नाच की धूम
बाजार में डील पाटने के बाद, यदुवंशी समुदाय के लोग अपने गांव ले जाकर पखवाड़े भर कर यादव समाज रावत नाच महोत्सव का आयोजन करते हैं। सिर पर पगड़ी, रंग-बिरंगे कपड़े और हाथ में लाठी लेकर पुरुष पारंपरिक लोक नृत्य करते हैं। गांव की गैलरी में घूमकर दोहे मनाते हुए यह नृत्य आनंद और उत्सव का संदेश देता है। गड़वा बाजा बाज़ार केवल एक पारंपरिक बाज़ार नहीं है, बल्कि यदुवंशी समाज का सांस्कृतिक बाज़ार है। समय के साथ परिवर्तन और बदलाव के बावजूद, इस परंपरा को संजोए रखने की हर सीमा और उत्साह इस समारोह को साल भर के लिए तोड़ देते हैं। यह पारंपरिक परंपरा से चली आ रही है और आने वाले समय में भी इसे संरक्षित रखने की प्रेरणा दी गई है।

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