जबलपुर. कभी आपने यूज-चप्पल को लाइन क्लाइंड देखा है…देखना छोड़ दीजिए, आपने सुना ही नहीं होगा। लेकिन, मध्य प्रदेश के जबलपुर की एक ऐसी मंडी है, जहां आपको उपभोक्ता-चप्पल लाइन दिखेगी। असली, नींद खुलते ही किसान पानी गिरे या ओले पड़े, जाबांज की शाहपुरा मंडी की तरफ दौड़ लगाते हैं। यहां डीएपी के लिए सुबह से ही लंबी लाइन लगती है। जब किसान के पैर दर्द दिए जाते हैं, तब किसान पान खाते हैं। सभी बाज़ार-चप्पल अपनी जगहें किनारे पर मिलते हैं। यह रेखा कई मीटर लंबी होती है।
जापानीज का मटर एमपी में ही नहीं भारत में भी फेमस है। इसी प्रकार, किसानों के लिए डी.पी. की जरूरत है। नवीनतम लेकर किसान शाहपुरा मंडी भंडारी हैं। इस मंडी में बेल अलॉटमेंट, चरंगवा और शाहपुरा के हजारों किसान असंबद्ध हैं। नातिजन एक ही मंडी होने के कारण साराप्रेस शाहपुरा मंडी में होती है। यही वजह है कि सुबह 6 घंटे पहले ही किसान मंडियों में पहुंच जाते हैं. इतना ही नहीं, लंबी लाइन लगाने के बावजूद किसानों को खाली हाथ वापस जाना पड़ता है।
सैकड़ों गांव एक मंडी पर प्रतिबंध
भारतीय किसान संघ के किसान पटेल ने लोकल 18 को बताया कि शाहपुरा मंडी सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक खुलती है। विस्तार से, भीड़ होने के कारण किसान सुबह से ही मंडियों में पहुंच जाते हैं। पैर दर्द होने के कारण उपभोक्ता-चप्पल तक लाइन में लगने की नौबत आ जाती है। फिर भी इसके मंडी के अधिकारी 12 बजे के बाद आते हैं। इस डीएपी के वितरण में लेटलतीफी भी होती है। उन्होंने बताया कि अगर बेल अलॉटमेंट और चरंगवा ब्लॉक में अलग से मंडी खुल जाए। तब किसानों को आसानी से राहत मिलती है।
किसानों को प्राइवेट विभाग पर भरोसा नहीं
बोनी के दौरान किसान प्राइवेट डी.पी. पर भरोसा नहीं करते हैं। किसानों का भरोसेमंद आज भी स्टूडियो डी.पी.आर. है। यही कारण है कि किसान अपनी फसल बर्बाद नहीं करना चाहता। जानकारी के मुताबिक, किसान को 3 रुपये की पल्लेदारी के साथ करीब 1,353 रुपये की डीएपी की एक बोरी मिलती है। जबकि, येशी बोरी की कीमत प्राइवेट टॉयलेट में करीब 1500 से 1600 लाख रुपये है। प्रत्येक किसान को एक नामांकन के हिसाब से एक बोरी दी जाती है, जिससे किसान को भी एक बोरी दिखाई जाती है। लेकिन, तब भी सप्लाई कम होने की वजह से किसान डीएपी मिलने से बहस रह जाते हैं।
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पहले प्रकाशित : 26 सितंबर, 2024, 19:06 IST