नम्रतापुरम: नोएडापुरम का जुमेराती जयमाता महाकाली समिति का मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक मंदिर है, जिसकी स्थापना 1884 में केवल 5 से 6 सदस्यों ने मिलकर की थी। आज यह मंदिर पूरे शहर की आस्था और भक्ति का केंद्र बन गया है, जहां मां काली बड़ी सेठानी की प्रतिमा, भव्यता के साथ, नवरात्रि के दौरान स्थापित की जाती है। इस वर्ष इस मंदिर में 140वीं बार मां काली की प्रतिमा स्थापित की गई, और पूरे शहर ने इस पवित्र अवसर पर सामूहिक रूप से मां का स्वागत किया।

स्थापना का ऐतिहासिक सफर
1884 में जब इस मंदिर की स्थापना हुई थी, तब माँ काली की मूर्ति को बैलगाड़ी और हाथ की थाली से लाया गया था। यह परंपरा रूहिया बाई मिश्रा परिवार, नागा परिवार, विडोलिया परिवार, शंकर लाल बोहरे परिवार, गौरीशंकर साहू सेठ परिवार, और स्व. प्रदीप जी परिवार द्वारा शुरू की गई थी। उस समय 4 से 5 फीट की छोटी मूर्ति मटका बाजार में देखने को मिलती थी, लेकिन अब 80 से 10 फीट की ऊंचाई वाले मंदिरों में 8 से 10 फीट की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है, जिसे देखने के लिए शहर के लोग बड़ी संख्या में बाजार में आते हैं।

भक्तों के आभूषण और सोने- भक्तों के आभूषणों से सिंगार
मां काली के भक्त सोने और चांदी के आभूषण बनाते हैं, रैना मां का सिंगार किया जाता है। यह पारंपरिक मंदिर की स्थापना के समय से चली आ रही है। माँ काली को स्टार बनाने का यह रिवाज बोहरे परिवार के सहयोग से शुरू हुआ और आज भी भक्त अपने मन को पूरी तरह से सोने पर मजबूर कर रहे हैं। इसके साथ ही, 2003 से इस मंदिर में शतचंडी यज्ञ की परंपरा शुरू हुई, जिसमें रामदास बोहरे यज्ञमान होते हैं और यज्ञ के आचार्यत्व की भूमिका पंडित सोमेश परसाई बताते हैं।

समिति की वफ़ादारी.भावना
समिति के सदस्यों ने बताया कि मां काली की स्थापना की शुरुआत समिति के एक सदस्य ने की थी, जो मुंबई में रहते थे, वे वहां के स्थानीय लोगों से चंदा कर माता की पूजा के लिए एकत्र हुए थे। नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक यहां पर आदिवासियों का तांता लगा रहता है, और मंदिर परिसर में एक भव्य महल का रूप ले लिया जाता है।

मंदिर के चबूतरे का ऐतिहासिक संघर्ष
मंदिर की जगह को लेकर 45 साल पहले एक घटना घटी थी, जब प्रशासन मंदिर के चबूतरे को तोड़ने के लिए बुलडोजर ले आया था ताकि वहां से सड़क निकाली जा सके। उस समय स्व. प्रदीप किशोर ने अपने बच्चे को बुलडोजर के सामने लिटा दिया, जिससे प्रशासन को पीछे हटना पड़ा और चबूतरा नहीं बनाया गया। बाद में, 1997 में शंकर लाल बोहरे मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया और इसे एक भव्य रूप दिया गया।

दशहरा पर रावण दहन से पहली रिवायत की परंपरा
एक महत्वपूर्ण परंपरा के अनुसार, दशहरा मैदान में रावण दहन तब तक नहीं होता जब तक जुमेराती की मां महाकाली की आराधना पूरी नहीं होती। यह परंपरा आज भी शहर में सर्वोच्च सम्मान के साथ जारी है।

निष्कर्ष
माँ काली बड़ी सेठानी का यह मंदिर नॅमपुरम का धार्मिक और सांस्कृतिक चमत्कार का सिद्धांत है। 5 परिवारों ने इस परंपरा को आज पूरे शहर में आस्था का केंद्र बनाने के लिए शुरू किया। यहां का धार्मिक आकर्षण, जैसे कि सोने के आभूषणों से लेकर मां का सिंगार और शतचंडी यज्ञ, से मंदिर न केवल शहर के लिए बल्कि आस-पास के क्षेत्र के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया है।

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