छतरपुर: हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पुरुषों को बाल नहीं बनवाना चाहिए। मूलतः, पितृपक्ष का समय अपने पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट होने का होता है। उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा-अर्चना होती है। ऐसे में पितृ पक्ष को लेकर शास्त्रों में कुछ नियम भी बताए गए हैं। पुरुषों के लिए भी एक नियम यह है कि पितृदोष के दौरान बाल-दही नहीं बनवाना चाहिए। लेकिन क्यों, यहां जानिए कारण…
मध्य प्रदेश में छतरपुर के आचार्य प्रिंस शुक्ला ने स्थानीय 18 को बताया कि पितृ पक्ष भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होती है और आश्विन माह की पूर्णिमा तक जाती है। यह समय हमारे अध्यात्म की शांति के लिए समर्पित होता है। भारतीय धर्म शास्त्रों में पितृ पक्ष का सबसे बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस समय पितर (पूर्वज) पृथ्वी पर आते हैं और वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। उनके द्वारा किये गये दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
पहला धार्मिक कारण
आगे बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान हम अपने पितृ पक्ष के प्रति शोक व्यक्त करते हैं। शोक के समय खुद को गहना-संवारने को सही नहीं माना जाता है। हाय और बाल काटने वाले को शारीरिक सौंदर्य से मिश्रण को देखा जाता है और शोक के समय यह अनुचित समझा जाता है। इसलिए, पितृ पक्ष में नए और बाल काटने वाले से काम लिया जाता है।
दूसरा धार्मिक कारण
ऐसा भी माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान हम अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए पूजा-पाठ और श्राद्ध कर्म करते हैं। इन कर्मों के दौरान शरीर का भी शुद्ध रहना जरूरी होता है। बाल काटने या ना बनाने से शरीर की पवित्रता भंग हो सकती है, इसलिए आजकल इसे अवैध माना जाता है।
वैज्ञानिक कारण भी
पितृदोष में नाई और बाल न काटने के कुछ वैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि पितृ पक्ष के दौरान मौसम में बदलाव होता है। इस समय शरीर की संरचना क्षमता आकर्षक हो जाती है। इन या बाल कटर से त्वचा पर संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में इस परंपरा का पालन शरीर को संक्रमण से बचाने के लिए भी किया जाता है।
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पहले प्रकाशित : 12 सितंबर, 2024, 20:43 IST
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