राजानंदगांव: राजनांदगांव के ग्राम गांव में धान की खेती पर पेनीकल माइट्स मकड़ी और अन्य सब्जियों का प्रकोप पाया गया है। किसानों की याचिका पर कृषि विभाग की टीम ने सीमांकन और तकनीकी सलाह दी। टीम ने किसानों को कृषि विविधता और कृषकों के उपयोग की सलाह भी दी।

कृषि विभाग में डॉक्टरों के निर्देश
कलेक्टर संजय अग्रवाल ने धान की बीमारी में कीट प्रकोप की शिकायत का रिकार्ड लेते हुए उप-लीडर कृषि नागेश्वर लाल पांडे के निर्देशन पर एक डायग्नोस्टिक टीम संगीतकार की। इस टीम में सहायक सहायक कृषि डॉ. वीरेन्द्र अनंत, कृषि वैज्ञानिक, शस्य विशेषज्ञ और अन्य कृषि अधिकारी शामिल थे। टीम ग्राम ने घुमंतू में किसानों के सलाहकारों का निरीक्षण किया और समस्या का समाधान प्रस्तुत किया।

उपकरण का निरीक्षण और नमूना परीक्षण
डायग्नोस्टिक टीम ने किसानों के धान की फसल का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान ठगिया बाई साहूकार के खेत में भूरे माहू के प्रकोप के कारण आर्थिक क्षति हुई। अन्य किसानों के लाइसेंस में पेनीकल माइट्स, टाना चेल्डक, शीथ ब्लाइट और अन्य कीट व विक्रेताओं का भी प्रकोप देखा गया। टीम ने कृषि कॉलेज सुरगी की टीम के लिए फ़ासल एमैशियल एकत्रीकरण कर जांच की, जहां से पेनिकल माइट्स की पहचान की गई।

तकनीकी सलाह के अनुसार फसल संरक्षण के लिए दी गई जानकारी
निरीक्षण के बाद ग्राम पंचायत भवन में किसानों के साथ एक चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। पौध रोग विशेषज्ञ डॉ. नितिन कुमार तुर्रे ने धान और रबी झील की रोकथाम के बारे में जानकारी दी। कीट वैज्ञानिक डॉ. मनोज चन्द्राकर ने धान की फसल पर कीट का प्रकोप और उनके समाधान के तरीके समझाए। किसानों को फसल विविधीकरण संयोजन पर जोर दिया गया ताकि किसानों का प्रकोप कम हो सके।

पेनिकल माइट नियंत्रण के उपाय
सहायक अध्यापक कृषि डॉ. वीरेन्द्र अनंत ने बताया कि पेनिकल माइट्स धान की खेती के अंदर रस चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इन पर नियंत्रण के लिए 240 मिली प्रति एससीए की खुराक, क्लोरफेनपायर 10 एससीए की 150-200 मिली प्रति एकड़ की सलाह दी गई। साथ ही कवकनाशी हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ईसी का 1000 मिली प्रति सैकड़ा, या प्रोपिकोनाज़ोल 25 प्रतिशत ईसी का 200 मिली प्रति सैके की दर से विकसित करने की सलाह दी गई।

व्यावसायिक विविधता की आवश्यकता जोर पर
टीम ने किसानों को धान के फसल चक्र में बदलाव और विशेष रूप से दलहनी और तिलहनी बीजाणु के साथ विविधीकरण सिद्धांत का परामर्श दिया। इससे कीट के प्रकोप में कमी आ सकती है और मिट्टी का उर्वरता भी बनी रहती है। कृषि विभाग की इस तकनीकी सलाह और निरीक्षण से किसानों को अपनी फसल के प्रकोप से बचाव में सहायता मिलती है, जिससे उन्हें अच्छी उपज प्राप्त हो सके।

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