यूपीपी/कोरबा: ठंड की शुरुआत के साथ ही प्रवासी पक्षी अपने बच्चों के साथ कोरबा जिले के कनकेश्वर धाम से मीलों की यात्रा तय कर वापस लौट आते हैं। दशकों से एशियाई ओपनबिल स्टार्क बर्ड ने इस स्थान को अपनी यात्रा और जन्मस्थान का प्रिय स्थान बनाया है। हर साल मई के आखिरी सप्ताह में ये पक्षी यहां आते हैं और ठंड की शुरुआत में स्वदेश लौट जाते हैं।

शिव आश्रम से पर्यटक पक्षियों का आगमन
भगवान शिव की आराधना के लिए प्रसिद्ध कनकेश्वर धाम में पक्षियों का आगमन स्थानीय लोगों के लिए आस्था का प्रतीक है। यहां बारिश की शुरुआत में पक्षियों के आगमन का संकेत भी माना जाता है। ये पक्षी इमली, बरगद, पीपल, बबूल और बांस के शौकीन हैं। यहां लगभग 10 से 20 हजार पक्षी और एक पेड़ पर 40-50 पक्षी देखे जा सकते हैं। हर उद्यम में चार से पांच अंडे होते हैं, रेनस सितंबर से अक्टूबर के बीच चूजे बड़े पैमाने पर उड़ने में सक्षम हो जाते हैं। ये पक्षी हर साल अपने पिछले घोंसला वाले स्थान पर ही घोंसला बनाते हैं।


पक्षी संरक्षण में योगदान दे रही नोवा नेचर डेकोरेट सोसाइटी

छत्तीसगढ़ में प्रावधान संरक्षण के लिए काम कर रही नोवा नेचर डिमालिका सोसाइटी के अध्यक्ष सन जी ने बताया कि एशियन ओपनबिल स्टार्क पक्षी सामान्य रूप से अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं, लेकिन बैल में एक साथ मिलकर घोंसला बनाने के लिए एक ही स्थान का चयन करें हैं. इनमें मुख्य आहार घोघे और जलीय जीव होते हैं। कांकी गांव की क्लाइस्टिक क्रीड़ा प्रजाति के लिए अनूठे मुगलों की पेशकश की जाती है, जिसके कारण ये पक्षी यहां वर्षों से आते रहते हैं। ये कीटभक्षी पक्षी किसानों के सहयोगी हैं, क्योंकि ये धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटनाशक का सफाया कर देते हैं।


डिफॉल्ट का पैगाम अपने वतन लेकर जाएं

मई में ड्रैगन का पैगाम लेकर कोरबा क्षेत्र में ये प्रवासी पक्षी अब ठंड के साथ अपने वतन लौट रहे हैं। स्थानीय लोग अगली बार फिर से देखने का इंतजार करेंगे, जब ये पक्षी एक बार फिर से का संदेश लेकर कोरबा के कनकेश्वर धाम पहुंचेगा।

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