बिलासपुर: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित माता धूमावती का प्रसिद्ध मंदिर, जिसे ‘चिट्ठी वाली माता’ के नाम से भी जाना जाता है, के बीच विशेष विवरण है। कहा जाता है कि जो भी भक्त शिष्य मन से अपने विचारों को जन्म देकर माता के चरणों में स्थापित करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। इस मंदिर की महात्म्य पूरे भारत में प्रसिद्ध है, और यहां सालों भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

मन पूरी तरह से होता है
दर्शन करने वाली महिला जयश्री लोकल 18 से बात करते हुए कहा गया है कि वे तीन सागरों से दतिया माता मंदिर में हर शनिवार को आते हैं। कोई भी मन हो तो पूर्ण रूप से हो जाता है। अपने मन को मंत्रमुग्ध करने में माता को शामिल किया जाता है, इसके बाद मन पूरी तरह से हो जाता है। साथ में ही भोग के रूप में मिर्ची भजिया दागते हैं, जिसे माता और भी पसंद करती हैं और खोया हुआ कोई भी सामान दो से तीन दिन के अंदर मिल जाता है।

भोग में चड़ाया जाता है मिर्ची भजिया
माता को विशेष रूप से मिर्ची भजिया, प्याज भजिया, दही, जलेबी, पूड़ी और हलवे का भोग लगाया जाता है। यहां पर भक्त माता से लेकर अपनी मनोवस्था के लिए ज्योति कलश जलाते हैं, विशेष रूप से नवरात्रि में यह कलश नौ दिनों तक अनोखा जलता रहता है। माता धूमावती की प्रतिमा एक साधारण साधारण महिला के रूप में दिखाई देती है, जिसे देखने में अद्भुत लगती है। मध्य प्रदेश के दतिया के बाद ऐसी ही एक प्रतिमा केवल बिलासपुर में स्थापित है। मंदिर परिसर में शिव और शक्ति की उपस्थिति भी मणि जाती है, इसलिए इसे शिव शक्ति मंदिर भी कहा जाता है। भक्तगण माता की प्रतिमा के दर्शन कर अपना मन पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं।

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भारत और चीन युद्ध के दौरान हुई मंदिर की स्थापना
मंदिर की स्थापना महागुरु के निर्देशानुसार सबसे पहले 1962 में दतिया, मध्य प्रदेश में भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्र की रक्षा के लिए की गई थी। बाद में 2005 में बिलासपुर में पीतांबरा पृष्णिमा देवी माता के इस मंदिर की स्थापना हुई। इस मंदिर के महंत देवानंद जी महाराज के अनुसार, माता धूमावती सभी भक्तों के कष्टों को दूर करती हैं, खासकर तब, जब अन्य देवी-देवताओं के दरबार से निराश भक्त यहां आते हैं।

बता दें कि इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां माता-पिता की परंपरा है। यह सिद्ध है कि जो भी भक्त हृदय से माता के चरणों में चढ़ता है, उसका मन तीन दिनों के भीतर पूर्ण हो जाता है। इस मंदिर का इतिहास भारत-चीन युद्ध से जुड़ा है, जब महागुरु ने माता का आह्वान कर तीन दिन के अनुष्ठान के बाद चीन युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था।

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