भोपाल: मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता ने हमेशा लोगों का ध्यान खींचा है। यहां की अलग-अलग जन-जातियां, समुदायों के लोक नृत्य और पारंपरिक रीति-रिवाज दुनिया भर में मशहूर हैं। इसी श्रृंखला में गोंड जनजाति के “गेंडी नृत्य” ने हाल ही में भोपाल में अपनी खास छाप छोड़ी।

गोंड जनजातीय समुदाय
गोंड जन जातीय समुदाय का यह नृत्य विशेष रूप से हिंद वेव के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसमें बंदेवार और उनके समूह ने अपनी कला से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोंड जनजाति में गेंडी नृत्य का ऐतिहासिक महत्व है, जिसे मुरिया लोग “डिटोंग पाटा” भी कहते हैं। गेंडी नृत्य की खास बात यह है कि इसमें कलाकार लकड़ी की गेंडी परास्तिक नृत्य करते हैं, बिना किसी गीत के।

गेंडी नृत्य का इतिहास
गेंडी का उपयोग पारंपरिक रूप से पुराने समय में वर्षा के मौसम में वर्षा से बचने और धान की फसल का उपयोग समय पर किया जाता था। धीरे-धीरे यह जनजातीय जीवन का एक हिस्सा बन गया और गेंडी नृत्य के रूप में उभरकर सामने आया। स्थानीय 18 से बात करते हुए हिंदु से आए कलाकारों ने बताया कि यह कैसे नृत्य कला के साथ उनके जीवन का एक प्रमुख हिस्सा बन गया है।

कलाकारों का संघर्ष और उपहार
गेंडी नृत्य में सर्वश्रेष्ठ हासिल करना आसान नहीं है। इसके लिए काफी अभ्यास और धैर्य की आवश्यकता होती है। विजय बंदेवार ने बताया, “हम सुबह ही अभ्यास शुरू कर देते हैं।” कई बार गैसोलीन होते हैं, लेकिन फिर से खजाने की कोशिश की जाती है। यही हमें ये नृत्य में सबसे बेहतर बनाता है।”

गेंडी नृत्य का प्रदर्शन
यह नृत्य समूह देश के बड़े-बड़े कई शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुका है। हिंद के इन कलाकारों ने पिछले 10-15 वर्षों में गोंड जन जातीय संस्कृति और गेंडी नृत्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनकी यह नृत्य कला जहां भी चित्रित है, वहां दर्शक डांग रह जाते हैं।

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