खंडवा: इस दौर में ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन करना परिवर्तनशील होता जा रहा है। विशेष रूप से जब कई ग्रामीण लोग पुराने और तकनीकी तकनीशियनों की ओर रूझान कर रहे हैं। खंडवा जिले के अहमदपुर खेतगांव गांव में गोबर गैस प्लांट से बायो गैस बनाने वाली महिलाएं अपने चूल्हे जलाने में सक्षम नहीं हो पा रही हैं। इस तकनीक से न केवल गैस की समस्या हल हो रही है, बल्कि इसके साथ ही बचे हुए गोबर को खाद के रूप में भी उपयोग में लाया जा रहा है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ हो रहा है।

गोबर गैस बनाने का तरीका
गोबर गैस संयंत्र की प्रक्रिया अत्यंत सरल है। सबसे पहले, 12 से 13 किलोवाट गोबर को एक टैंक में डाला जाता है, फिर उसमें पानी मिलाकर उसका नासाल तैयार किया जाता है। इस गोबर को टैंक में बनाकर गुम्बद में छोड़ दिया जाता है, जहाँ गोबर के अपघटन से बायो गैस का निर्माण होता है। इसके बाद इस गैस को गुम्बद में लगे पाइप के माध्यम से घर तक सुरक्षित रखा जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से प्राकृतिक और टिकाऊ है।

ग्रामीण परिवारों को मिल रही मदद
गांव में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के कर्मचारी अपने परिवार के साथ 1982 से इस गोबर गैस प्लांट का उपयोग कर रहे हैं और उन्हें किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है। प्रतिदिन 25 किलोवाट गोबर का उपयोग करके इतनी गैस बन जाती है कि दोनों समय के भोजन की तैयारी आसानी से हो जाती है। इससे हर महीने गैस सिलेंडर की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे ग्रामीण परिवारों के बजट में बड़ी बचत होती है।

गोबर गैस प्लांट का विमोचन केवल एक कथित ऊर्जा स्रोत नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी प्रतिस्पर्धी है। इस दौर में इस तकनीक से ग्रामीण जीवन को आसान और सरल बनाया जा रहा है।

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