खंडवा: करवा चौथ पर अक्सर महिलाएं मिट्टी का करवा ही मंगाती हैं। हर साल नया करवा महिलाएं लेती हैं और हर साल करवा की सजावट भी काफी रहती है। इस खबर के माध्यम से हम जानेंगे कि आखिर महिलाएं चोरी, चोरी या अन्य किसी धातु का करवा क्यों नहीं इस्तेमाल कर सकती हैं। सबसे पहले जानिए करवा चौथ क्या होता है। दरअसल, पतिव्रता महिलाएं करवा चौथ के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत लिखती हैं। इस दिन भोजन और जल पीना मनभावन है। इसलिए इस दिन तब तक जल ग्रहण नहीं किया जाता, जब तक महिलाएं चंद्रमा को देखकर उसकी पूजा न कर लें।

माँ सीता का कलश का महत्व
प्रमिला शर्मा ने लोकल 18 को दी गई जानकारी में बताया कि मां सीता का जन्म कलश के रूप में इसी धरती पर हुआ था। पहली बार हमारे घर में भी मिट्टी के ही होते थे और हमारी जमीन में भी मिट्टी से ही बनी थी। मां सीता ने मिट्टी के कलश चंद्रमा को अर्घ्य देकर अखंड सुहाग की कामना की थी। उन्होंने चंद्रमा को मिट्टी के कलश से अर्घ्य दिया, क्योंकि मिट्टी का कलश कभी भी बुरा नहीं होता। अनोखी सुहाग और समृद्धि देने वाली माँ भगवती, जो कि लक्ष्मी भगवती हैं, हमारी पृथ्वी से ही हमें सब कुछ प्राप्त होता है।

पंडित कैलाश पीयूष शर्मा की राय
पंडित कैलाश वर्ष 2019 शर्मा के अनुसार करवा चौथ सौभाग्य प्रदान करने वाला होता है। करवे का अर्थ मिट्टी के पात्र से है और चौथ का मतलब चतुर्थी होता है। चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश और मां पार्वती की पूजा की जाती है, और करवे से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। मिट्टी के करवे की मान्यता है कि वह कभी समाप्त नहीं होती, वह सदैव जीवित रहती है। आपको बता दें कि यह व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है। पहले तो कुछ भी खा-पी सकते थे, लेकिन उसके बाद जब तक रात को चन्द्रोदय नहीं होता, तब तक जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। अगर कोई स्वास्थ्य समस्या हो तो जल पी सकते हैं। चंद्र दर्शन के बाद ही इस व्रत का विधि-विधान से पारण करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, केवल सुहागिनें या मिश्रित संबंध तय हो सकते हैं, जिन स्त्रियां यह व्रत रख सकती हैं। पत्नी के साथ विवाह होने पर पति भी यह व्रत रख सकते हैं।

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