छतरपुर. ठंड का मौसम शुरू हो गया है. बाज़ार में कई अनमोल फल शुरू हो गए हैं। नींद में से एक है सिंघाड़ा, जिसे पानी का फल भी कहा जाता है। छतरपुर जिले में इस फल की खेती कई साल से हो रही है। यह छतरपुर का प्रसिद्ध फल है। सिंघाड़ा फल खाने में मीठा रहता है, स्वाद ही स्वास्थ्य के लिए जादुई होता है।

सिंघाड़े में विटामिन ए, विटामिन सी, मैग्नीज, कार्बोहाइड्रेट, आयोडीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, कैल्शियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, लेकिन पानी का यह मीठा फल पदार्थ अब तक कैसे प्रकट होता है। बड़े-बड़े तालाबों में किसान जान जोखिम में कैसे करते हैं खेती, जानिए किसान उद्योग से…

किसान रामस्वरूप स्थानीय18 बातचीत के दौरान अपना हाथ दिखाते हुए कहा कि इस खेती को करने में खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि पानी में बहुत सारे जहरीले जीव रहते हैं। सांप जैसे जीव के काटने वाले का भी डर बना हुआ है। तालाब के पानी में खतरनाक केकड़े भी रहते हैं।

हाथ-पैरों में ऐसा होता है सुग्गन
तालाब में ख़ज़ा भी बहुत रहता है. इसके वज़ह से शरीर में खुजली बनी रहती है। सबसे बड़ी समस्या सिंघाडी स्थिति में है, क्योंकि फरवरी महीने में तालाब का पानी 6 फीट भरा रहता है। जीवन का जोखिम लेकर सिंघाड़ा क्लिंज हैं। तालाब के पानी के अंदर रहते हैं तो पानी के खज्जे की वजह से शरीर में खुजली बनी रहती है। हाथों में चिकन पैदा होते हैं, हाथ खराब हो जाते हैं। हैंड-पैरों की त्वचा दिखती है, काली पैड मिलती है।

सिंघाड़े की खेती बहुत कठिन
नारायण रिकार्डवार का कहना है कि सिंघाड़े की खेती बहुत कठिन होती है। हम सुबह अपने घर से कोसोन दूर आते हैं। बचे हुए खाना हैं, बचे हुए हैं और रात में बेचे गए हैं। 8 महीने पानी में डूबकर तालाब का खज़ाना मिलता है, ताकि सिंघाड़ा पठथे और ज्यादा फल मिले। रिज़ल्ट पानी में रहते हैं, ड्रग का साज़िश करते हैं। टैब बिजनेस सिंघाड़ा की निर्मिति होती है।

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