अद्भूत स्थल! इस जगह भगवान राम ने खाए थे शबरी के झूठे बेर, यहां वट वृक्ष का हर पत्ता दोने जैसा


लखेश्वर यादव/ जांजगीर चांपा. जांजगीर चांपा जिले के धार्मिक नगरी शिवरीनारायण को गुप्त प्रयाग कहा जाता है. यह नदी महानदी, शिवनाथ और जोक नदी का त्रिवेणी संगम हैं. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पूरा शिवरीनारायण क्षेत्र आस्था और ऐतिहासिक पौराणिक मान्यताओं से भरा हुआ है. शिवरीनारायण धाम अपने आप में अनूठा है. यह भक्ति और भावना का अनूठा संगम हैं, यहां भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर जिस दोनानुमा पत्ते में खाएं थे. वो अनोखा पेड़ आज भी यहां है, जिसे कृष्ण वट कहते हैं.

छत्तीसगढ़ जांजगीर चांपा जिले से भगवान राम का बहुत गहरा नाता है,  प्रभु राम ने वनवास समय यहां भी समय बिताया था. ऐसी मान्यता है कि यहां माता शबरी ने वर्षो तक अपने आराध्य श्री राम का इंतजार किया था. वो हर दिन प्रभु के आने की आशा लेकर रास्ते को फूलों से सजाती थीं, और प्रभु ने दर्शन देकर शबरी को धन्य कर दिया. राम ने अपनी शबरी के भक्ति से इतने अभिभूत थे, कि उन्होंने शबरी के झूठे बेर खाने से भी कोई संकोच नहीं हुआ. क्योंकि यहां भगवान सिर्फ उसकी भक्ति और भाव को देख रहे थे. शबरी जिस पत्ते में बेर रखकर श्री राम को खाने के लिए दे रहे थे. वह अनोखा पेड़ आज भी शिवरीनारायण मंदिर परिसर में है.

बरगद का अनूठा पेड़
मंदिर परिसर में लगा बरगद का पेड़ भी अपने आप में अनूठा है. जिसे कृष्ण वट कहा जाता है. इस पेड़ के पत्ते की आकृति दोना के सामान है. माता शबरी ने इसी दोना में बेर रख कर श्री राम को खिलाए थे. इस वट वृक्ष का वर्णन सभी युगों में मिलता है. इसलिए इसकों नाम अक्षय वट वृक्ष के नाम से जाना जाता है. वहीं मंदिर परिसर के पंडित ने बताया कि यह कृष्ण वट और कही नहीं है और इसके पत्ते ये कलम लेकर जगाने के लिए भी ले गए तो उगता नहीं है.

कैसे पड़ा शिवरीनारायण नाम
शिवरीनारायण धाम का नाम माता शबरी और नारायण के अटूट प्रेम के कारण पड़ा है. और भक्त का नाम नारायण के आगे रखा गया. जिसके कारण शबरी और नारायण मिलकर शबरी नारायण हुआ. जो अप्रभंश होकर शिवरीनारायण हो गया. इस नगर का अस्तित्व हर युग में रहा हैं. सतयुग में बैकुंठपुर त्रेतायुग में रामपुर और द्वापरयुग मे विष्णुपुरी और नारायणपुरी के नाम से विख्यात ये नगर मतंग ऋषि का गुरुकुल आश्रम और शबरी का साधना स्थल भी रहा हैं.

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