अन्य. अन्य में कलाकृतियों की प्रदर्शनी में स्टैंज़ौर पेंटिंग की बिक्री की गई है। इस कलाकृति के बारे में विशेष बात यह है कि यह कलाकृति को टेम्प्लेट के तम्बू में बनाया गया है। वहीं पर इसकी ट्रेनिंग भी दी जाती है. असल में यह सिर्फ पेंटिंग आर्ट नहीं है, एक प्रकार की इष्ट साज़िश है, जिसमें तमिल बनाई जाती है। उदाहरण आई चित्रा शर्मा ने इस आर्ट पर कुछ विशेष प्रयोग किया है।

तमिलनाडु के तन्ज़ौर में एक विशेष प्रकार की कला का अभ्यास किया जाता है, जिसे तन्ज़ौर पेंटिंग कहा जाता है। इस पेंटिंग को सीखने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन किया जाता है, जिसमें गुरु अपने शिष्यों को इसे सीखने के साथ-साथ इसकी साधना की शिक्षा भी देते हैं। तान्ज़ौर में यह कला मुख्य रूप से इष्ट देवताओं की मूर्ति के रूप में बनाई गई है और उनकी भक्ति में समर्पित पेंटिंग के रूप में बनाई गई है।

सोने का भी होता है उपयोग
पिन-ड्रॉप साइलेंस में कलाकार अपने इष्ट की पेंटिंग तोड़ते हैं और साथ ही मंत्र जाप करते रहते हैं, जिससे उन्हें गहन ध्यान की प्राप्ति होती है। इस तीसरे वर्ष में वे ऐसा अनुभव करते हैं कि उनकी पेंटिंग में उनका साक्षात निवास हो रहा है। इसके बाद इसे मंदिर में रखा जाता है और पूजा की जाती है। इस कला में सोने का भी उपयोग होता है, जिससे पेंटिंग में विशेष चमक और भव्यता दिखाई देती है।

प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग और एक साधना का अनुभव
टेन्ज़ौर पेंटिंग की विशेषज्ञ चित्रा शर्मा ने स्थानीय 18 से बातचीत में बताया कि वे इस कला को सीखने के लिए तमिलनाडु में हैं। इस कला को बनाने में पूरी तरह से प्राकृतिक तत्वों का उपयोग किया जाता है। पेंटिंग में लाइक वाले गोल्‍डन के लिए बाबुल के पेड़ से गोल्‍डन प्राप्त करने का प्रयोग होता है। रंग भी पूरी तरह से प्राकृतिक संसाधनों से बनाये जाते हैं। तेंजौर पेंटिंग बनाने में बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक पेंटिंग बनाने में लगभग एक साल का समय लग सकता है। दरअसल, यह कला साधना से ऊपर एक आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में ले ली गई है।

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