खंडवा के प्रजापति समाज की कला संकट में, संस्था की चमक ने पुश्तैनी आतंकियों को बनाया जमींदोज

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खंडवा: इस त्योहार में रंग-बिरंगे और डिज़ाइनर दिए गए हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पारंपरिक मिट्टी से बने कुम्हारों की क्या स्थिति है? खंडवा के प्रजापति समाज के लोग, प्रोटोकाल पुश्तैनी कला मिट्टी से दिए गए विवरण, खिलौने और अन्य मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, आज टुकड़ों और आधुनिक डिजाइनर दीयों के सामने संघर्ष कर रहे हैं। इस बार खंडवा में केवल 10% ही देसी मिट्टी के बने बनाये गये हैं, जबकि बड़ी संख्या में मशीनों से बने बाजार में कब्ज़ा हो गया है।

प्रजापति समाज की प्रेरणा के संकेत के लिए स्थानीय 18 की टीम खंडवा के गोपाल खंड, जहां अनिल कुमार प्रजापति ने इस संघर्ष की कहानी साझा की। अनिल कहते हैं कि उनके परिवार का पुराना व्यवसाय मिट्टी के बर्तन और अन्य धार्मिक निर्माण है, लेकिन अब सोसायटी की रैपिड ने अपने पारंपरिक काम की कमर तोड़ दी है। उनका समाज लगभग 70-75 परिवार मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। वे कहते हैं, “इस काम के लिए हमें विशेष प्रकार की मिट्टी चाहिए जो केवल नर्मदा नदी के तटों पर है।” इसे ओंकारेश्वर और पुनासा से मंगाने पर करीब 5,000 रुपये प्रति ट्रॉली खर्च आता है।”

पारंपरिक चके पर मेहनत और इलेक्ट्रॉनिक चके की कमी
अनिल और उनके मित्र परिवार अभी भी पारंपरिक चक (पोटरी व्हील) पर नीचे दिए गए चक्के हैं, जिस पर मसाले में लगभग 500 से 700 दिए गए ही बन गए हैं। इन दीयों को बनाने में परिवार के कई लोग रहते हैं और फिर उन्हें 3-4 दिनों तक अनफिल्टर में बिठाया जाता है। बारिश के मौसम में यह प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है, क्योंकि बारिश के कारण बारिश का खतरा बना रहता है। इसके अलावा, इन दीयों की लागत बढ़ने के कारण उन्हें मुश्किल से 1.20 रुपये में पूरा किया जा सकता है, जिससे केवल 5-6 रुपये प्रति किलोग्राम की आय होती है।

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डिज़ाइनर दीयों का बढ़ता और बाज़ारवादी समाज पर प्रभाव
खंडवा के बाजार में इस साल 11 लाख से ज्यादा डिजाइन गुजरात के मोरबी से आए हैं, जो सोसायटी पर बनाए गए हैं और शेयर भी किए गए हैं। इन दीयों की वास्तुकला और आधुनिक डिजाइन लोगों को आकर्षित कर रहे हैं, इस कारण लोग देसी दीयों की डिजाइन डिजाइनरों को अधिक पसंद कर रहे हैं। अनिल का कहना है, ”लोगों का रुझान अब व्यापारियों और डिजाइनरों की तरफ बढ़ रहा है।” ऐसे में हमारे देसी दीयों की मांग कम हो गई है, और इस पुश्तैनी काम में हमें अब मुनाफ़ा भी नहीं होता।”

प्रशासन से इलेक्ट्रॉनिक चाक की अपील
खंडवा के प्रजापति समाज के लोग प्रशासन और सरकार से इलेक्ट्रॉनिक चक्के (मोटर पॉटरी व्हील) की मांग कर रहे हैं ताकि उनके काम की गति और उत्पादन में सुधार हो सके। अनिल और उनके समाज के अन्य लोगों का कहना है कि अन्य कलाकृतियों में माटी कला बोर्ड की मदद से इलेक्ट्रॉनिक चक्के दिए जा चुके हैं, लेकिन खंडवा में इस तरह की कोई मदद नहीं मिली है। इलेक्ट्रॉनिक चक्के से मिल कर अपने उत्पाद को बढ़ाया जा सकता है और आधुनिक दीयों से मिल रही प्रतियोगिता का सामना किया जा सकता है।

पुश्तैनी पटाखों को बनाए रखने की जद्दोजहद
प्रजापति समाज के लोग इस पुश्तैनी काम को छोड़ने का उद्यम नहीं करते, क्योंकि इसके अलावा उनके पास कोई अन्य रोजगार नहीं है। मिट्टी के दिये बनाने का यह काम उनके द्वारा चलाये जा रहे हैं और उनके लिये यह काम केवल रोजगार नहीं है, बल्कि एक परंपरा और पहचान है। अनिल शिक्षक हैं, “यह काम हमारे दादा-परदादा का है।” इसे ठीक हम क्या करेंगे? हमारी अपील है कि सरकार हमें सहयोग दे ताकि यह दस्तावेज़ जीवित रहे।

टैग: दिवाली उत्सव, खंडवा समाचार, स्थानीय18, मध्य प्रदेश समाचार

पहले प्रकाशित : 30 अक्टूबर, 2024, 18:11 IST

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