नम्रतापुरम: भारत की सांस्कृतिक विविधता और कौमी एकता की अनोखी मिसाल पेश करने वाला एक मुस्लिम परिवार तीन मंदिरों से दशहरे पर रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले बना हुआ है। नोएडापुरम के रहने वाले मोहम्मद शमीर खान का परिवार दशहरे के इस पवित्र त्योहार में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है। तीन दशक से भी अधिक समय से यह परिवार न केवल रावण के पुतले का निर्माण कर रहा है, बल्कि कौमी एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है।
मोहम्मद मोहम्मद शेखर खान ने लोकल 18 को बताया कि उनके लिए पुतले बनाना एक पारिवारिक परंपरा है जो उनके तीन मंदिरों से चली आ रही है। बचपन से ही पुतले बनाने की कला में निपुण कलाकार शिष्य हैं कि इस काम को करने में उन्हें गर्व महसूस होता है। हालाँकि, उन्होंने यह भी बताया कि पुतलों के निर्माण में लागत में कटौती हुई है। पहले रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद की पुतलियों को बनाने में करीब 50 हजार रुपए का खर्च आता था, लेकिन अब यह लागत करीब 2.5 लाख रुपए तक पहुंच गई है।
पतले महीने में तैयार होते हैं
पुतले बनाने में कड़ी मेहनत और लंबा समय लगता है। पूरी पुतले को बनाने में लगभग एक महीने का समय लगता है। बांस की पिंचियाँ, लकड़ी, धागा, घास, और रंग जैसे विभिन्न वार्निशों का उपयोग किया जाता है। पहले पुतले का ढाँचा बांस की पिंचियों से बनाया जाता है, फिर उस पर कपड़ों की साड़ी बनाई जाती है, और अंत में उसे पुतले की संरचना से जोड़ा जाता है।
पुटलोन का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई रहस्यों का सामना करना पड़ता है। सीज़न की मार भी इस काम में रुकावट डालती है। अगर बारिश होती है, तो पुत्तलों को पन्नियों से ढककर रखा जाता है ताकि वे खराब न हों। पूरी तरह से तैयार होने के बाद वे लंदन के मैदान में ले जाते हैं, जहां दशहरे के दिन उनका दहन होता है।
परिवार का सहयोग
मोहम्मद मोहम्मद शेखर खान का कहना है कि पुतले को इस काम में पूरा परिवार मदद करता है। उनके साथ काम करने के लिए एक सहायक भी होता है, और घर के लोग सिया और अन्य आवश्यक कार्यों में हाथ बंटाते हैं। यह सिर्फ एक पेशा नहीं है, बल्कि उनके परिवार के लिए एक परंपरा और विरासत है जिसे वे पीढ़ी दर पीढ़ी मनाते आ रहे हैं।
मोहम्मद साहब ने कहा कि दशहरे के अलावा वे मोहम्मद के दौरान ताजिए भी तोड़ते हैं। उनके लिए यह काम सिर्फ आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का नहीं है, बल्कि उनके समुदाय और देश की सांस्कृतिक खेती को आगे बढ़ाने का माध्यम है।
फसल का असर
पुट लोन्स के स्टोर की निर्माण लागत में बढ़ोतरी हुई है। शेखर ने बताया कि जहां पहले पुतले की कमाई 50 हजार रुपए तक थी, वहीं अब वह 2.5 लाख रुपए तक पहुंच गई हैं। इसके बावजूद, उनके परिवार ने इस परंपरा को जीवित रखा और दशहरे की शोभा बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
नोएडापुरम की अनोखी परंपरा
नवादापुरम का यह मुस्लिम परिवार कौमी एकता का प्रतीक है। दशहरे के पुतले ने कहा कि यह साबित करता है कि भारत में त्योहार और परंपराएं किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं हैं। यह परंपरा न केवल हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा देती है, बल्कि देश की गंगा-जमुनी तहजीब का भी जीवंत उदाहरण है।
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पहले प्रकाशित : 12 अक्टूबर, 2024, 19:33 IST