दिल्ली में लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस में अंदरूनी कलह सामने आई है। कांग्रेस अध्यक्ष को सौंपी गई फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट से पता चला है कि पार्टी के उम्मीदवार अपनी चुनावी हार के लिए आम आदमी पार्टी (आप) को जिम्मेदार मानते हैं। इन निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने आगामी दिल्ली और हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए आप के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है।
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कांग्रेस के तीन उम्मीदवारों – उदित राज, जेपी अग्रवाल और कन्हैया कुमार – ने दावा किया कि आप ने उनके अभियान का समर्थन नहीं किया और न ही उनके पक्ष में वोट ट्रांसफर की सुविधा दी। इन उम्मीदवारों ने समिति को बताया कि उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि आप का समर्थन उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा, “आप ने फरवरी में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की और प्रचार शुरू कर दिया। हमने मार्च में अपने उम्मीदवारों की घोषणा की। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पार्टी कार्यकर्ताओं से हमारे लिए प्रचार करने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुझे लगता है कि उनका मानना था कि लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद, 10 महीने से भी कम समय में दिल्ली विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस के लिए वोट मांगने से दिल्ली विधानसभा चुनाव में उनकी संभावनाएं कम हो जाएंगी। सिर्फ आप ही नहीं, कांग्रेस के भीतर भी कुछ स्थानीय नेता अपने उम्मीदवार के खिलाफ थे। उन्होंने मेरी छवि खराब की, जिसकी वजह से मुझे वह सीट गंवानी पड़ी, जिसे मैं जीत सकता था।”
कांग्रेस खेमे में दरार
हालांकि, समिति की टिप्पणियों से कांग्रेस खेमे में एक गहरी समस्या का संकेत मिलता है। यह पाया गया कि उम्मीदवारों की आप के समर्थन पर निर्भरता ने कांग्रेस कैडर को अलग-थलग कर दिया। पार्टी कार्यकर्ता कथित तौर पर इस उम्मीद से नाखुश थे कि आप उनकी सफलता सुनिश्चित करेगी, जिसके कारण अभियान प्रयासों में उत्साह और भागीदारी की कमी हो गई।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में इस असंतोष ने चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को काफी हद तक प्रभावित किया है। आप के समर्थन पर अत्यधिक निर्भरता न केवल वांछित परिणाम देने में विफल रही, बल्कि पार्टी के भीतर ही मतभेद भी पैदा हो गए, जिससे चुनावों में उनकी संभावनाएं और कम हो गईं।
विधानसभा चुनाव की स्थिति
दिल्ली और हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए रणनीतिक निर्णय का उद्देश्य इसी तरह के आंतरिक संघर्षों को रोकना और पार्टी के अभियान प्रयासों को मजबूत करना है। अकेले चुनाव लड़ने का विकल्प चुनकर, कांग्रेस अपने जमीनी समर्थन को पुनर्जीवित करने और अपने कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ने की उम्मीद करती है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पार्टी का अभियान बाहरी गठबंधनों पर निर्भर होने के बजाय अपने स्वयं के संसाधनों और प्रयासों से संचालित हो।
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जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, कांग्रेस का अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय, लोकसभा की पराजय से उबरने तथा दिल्ली और हरियाणा में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत के रूप में खुद को पुनः स्थापित करने की उसकी क्षमता का महत्वपूर्ण परीक्षण होगा।
आने वाले महीनों में पता चलेगा कि क्या यह रणनीति सफल होगी और यह इन क्षेत्रों में राजनीतिक परिदृश्य को किस प्रकार नया आकार देगी।
पहले प्रकाशित: 08 जुलाई, 2024, 17:30 IST