बिलासपुर: बैरिस्टर ठाकुर छेडीलाल कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, बिलासपुर में तीशू काल्चर तकनीक का उपयोग कर खेती के क्षेत्र में नई क्रांति की शुरुआत है। इस वैकल्पिक तकनीक से कॉलेज की लैब में रोगमुक्त केले के उपाय तैयार किए जा रहे हैं, जो सामान्य मशीनरी की तुलना में दो गुना अधिक उत्पादन क्षमता रखते हैं। टिशू कल्चर तकनीक की मदद से 45 दिनों में ये उपाय विकसित किए जा रहे हैं, जिससे किसानों को कम लागत में अधिक लागत मिल सके।

किसानों के लिए कम लागत में उच्च निर्माण
कृषि महाविद्यालयों के संयोजन के अनुसार, टिशु कल्चर से जुड़े उपचार केवल रोगमुक्त होते हैं, बल्कि अन्य रोग संयोजन क्षमता भी अधिक होती है। इन प्रमाणितों में 6-9 महीनों में तेजी से वृद्धि प्राप्त होती है, 9-12 महीनों में फूल आते हैं, और 12-18 महीनों में फल पूरी तरह से पक जाते हैं। किसानों को प्रमाणित से उच्च गुणवत्ता के समान आकार वाले केले प्राप्त होते हैं, जिससे उनके आय में भी बढ़ोतरी होती है।

एक रोगाणु से तैयार किए गए उपाय 100 से अधिक उपाय हैं
कृषि महाविद्यालय में वृद्ध वैज्ञानिक एवं चिकित्सक, डॉ. बिचौलिए वर्मा ने बताया कि टिशू कलचर तकनीक के माध्यम से केले के एक सेकेंसिटी (मेरिस्टेम) से 100 से अधिक रोगमुक्त औषधियां तैयार की जा सकती हैं। 45 दिनों के इनसाइड में जैव रसायन को वैज्ञानिक विधि से तैयार किया जाता है, जिसमें जैव रसायन का खतरा होता है और फसल की गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।

किसानों के लिए 14 रुपये प्रति उपकरण की दर उपलब्ध है
टिशु कल्चर से तैयार इन केले के अनुमोदित की कीमत 14 रुपये प्रति सप्ताह जारी है, ताकि सभी किसान आसानी से खरीद सकें। ये उपकरण पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और इनमें उच्च मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए होती है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ में इन कंपनी लिमिटेड की मांग तेजी से बढ़ रही है, जहां इसका प्रोडक्शन प्रोजेक्ट जारी किया जा रहा है।

टिशू कलचर टेक्नोलॉजी के प्रमुख चरण
1. मेरिस्टेम का चयन: केले के उपचार से एक छोटा सा स्पेशियलिटी (मेरिस्टेम) लिया जाता है।
2.सफाई: मेरिटेम को विशेष रूप से साफ किया जाता है।
3. वृद्धि: मेरिस्टेम को एक विशेष माध्यम में रखा जाता है जहां इसकी वृद्धि होती है।
4. शूट निर्माण: मेरिस्टेम से शूट विकसित किये गये हैं।
5. रूट निर्माण: शूट से रूट तैयार किये जाते हैं।
6. औषधों का विकास : रूट और शूट के विकास से पौधा पूर्ण रूप से तैयार होता है।

इस नई तकनीक से छत्तीसगढ़ के किसान खेती में नई फसलें मिल रही हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।

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