छतरपुर 3 अक्टूबर से शुरू होने वाली शरद नवरात्रि के लिए सभी देवी-देवताओं की सजावट का काम तेजी से चल रहा है। वस्तुओं में मां दुर्गा की स्थापना से पहले मूर्ति कलाकार, मूर्ति को अंतिम रूप में पेश किया गया है। मध्य प्रदेश के छतरपुर के चुरारी गांव के रामबाबू कुशवाहा पिछले तीन साल से मिट्टी से देवी की मूर्तियां बना रहे हैं। जहां शहर में पर्यावरण संरक्षण के लिए ज्यादातर पेरिस की मूर्तियां बनाई जा रही हैं, वहीं रामबाबू संरक्षण के लिए मिट्टी की मूर्तियां तैयार की जा रही हैं।
मिट्टी से देवी की मूर्तियां बनाते हैं रामबाबू
रामबाबू कुशवाहा ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि उन्होंने तीन साल पहले मिट्टी से देवी की मूर्तियां बनानी शुरू की थीं। उनकी मेहनत और माता रानी की कृपा से अब मिट्टी की कारीगरी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। पहले साल उन्होंने सिर्फ 5 मूर्तियां बनाईं, दूसरे साल 15 और इस बार 20 मूर्तियां बनाईं। उनके पास अभी भी ऑर्डर आ रहे हैं, लेकिन अब मूर्ति बनाने का समय नहीं बचा है।
यूट्यूब से सीखी मूर्ति बनाने की कला
रामबाबू कहते हैं कि उन्होंने मूर्ति बनाने की कला यूट्यूब के माध्यम से सीखी थी। चार साल पहले उन्होंने पहली बार देवी की एक छोटी सी मूर्ति बनाई थी। इस साल माता रानी के आशीर्वाद से उन्होंने 20 मूर्तियां तैयार की हैं, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
मिट्टी की मूर्ति बनाने की प्रक्रिया
रामबाबू की मूर्ति एक देवी की मूर्ति है जिसे तैयार करने में तीन दिन का समय लगा है। सबसे पहले धान का प्यार लाया जाता है और उसे सुतली से अवशेष मूर्ति का ढांचा बनाया जाता है। इसके बाद घटिया मिट्टी का लेप बनाया गया। फिर भुसे वाली मिट्टी को सांकर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और अंत में फिनिशिंग के लिए एक और परत बनाई जाती है। कच्चे रंग से मूर्ति को रंगने के बाद, अंतिम चरण में सजावट और श्रंगार का काम किया जाता है।
मिट्टी की कलाकृति से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा
जहां पेरिस के पेट्रोलियम से बनी मूर्तियां जल प्रदूषण का कारण बनती हैं, वहीं रामबाबू की मिट्टी की मूर्तियां न केवल पारंपरिक हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं। उनका प्रयास स्थानीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसकी आज भी जरूरत है।
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पहले प्रकाशित : 30 सितंबर, 2024, 12:11 IST